Tuesday, 4 October 2022

पूज्यनीय डॉ. प्रकाश बाबा आमटे


जीवन की सार्थकता क्या हैं अथवा निरर्थकता क्या हैं ऐसे प्रश्न कभी ना कभी हम सभी के मन मे आते ही रहते हैं. हमारी युववस्था मे, हो सकता हैं कि हम अच्छी नौकरी अथवा व्यवसाय, विवाह, घर गाड़ी आदि भौतिक प्राप्तियों को सार्थकता अथवा सफलता से जोड़े. परंतु हम जब हमारे जीवन के आखरी पड़ाव मे पहुँचते हैं तो हम जरा व्यापकता से हमारे जीवन को तोलते हैं, ऐसा मेरा मानना हैं. किसी कविता मे कहे जैसा...

आओ हिसाब लगाकर देखें हमने क्या खोया क्या पाया,
कितनी ले ली मोल बुराई या फिर आशीर्वाद कमाया!

हमारी सभ्यता मे भी तो जीवन के प्रतेक चरण को 25 वर्षों मे विभाजित कर ब्रह्मचार्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम एवं सन्यासाश्रम की कल्पना की गई हैं. साम्प्रत समय मे भले ही हम सन्यासाश्रम की अवधारना का पालन नहीं करते हो किन्तु हमारे माता-पिता, हमारे बड़े बुजुर्ग वानप्रस्थी की तरह हमारा मार्गदर्शन करते ही रहते हैं. दुर्भाग्य से मेरे पिता की वानप्रस्थी आयु देखना मेरे भाग्य मे नहीं आया. परंतु मैं सौभाग्यशाली हू कि मेरे भाग्य मे कई महानुभाव हैं जिनका स्नेह एवं मार्गदर्शन मुझे सदैव मिलता रहा हैं. वे मार्गदर्शन के नाते भले ही मुझे कुछ समझाते ना हो, परंतु उनके व्यक्तिव एवं कृतित्व से सदैव अनगिनत सी बाते सिखने को मिलती हैं. उनसे केवल संवाद मात्र से मुझे स्वकेंद्रित जीने की चिंताओं से परे होकर सोचने की प्रेरणा मिलती रही हैं.
पद्मश्री आदरणीय डॉ. प्रकाश बाबा आमटे जी ऐसी ही एक महान समाजसेवी हैं जिनको मैं मेरी बाल्यावस्था से जानता हू. वैसे तो उनका परिचय हम सभी को हैं, परंतु उनके जीवन एवं कार्य के प्रति हो सकता हैं हम मे से कुछ लोग थोड़े अनभिज्ञ हो. 1970 के दशक से वे और उनकी पत्नी डॉ. मन्दाकिनी आमटे (दोनों भी MBBS एवं पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर्स) भामरागड़ परिसर मे लोगों को आरोग्य सेवाएं प्रदान कर रहें हैं. आरोग्य सेवाओं के साथ ही शिक्षा, ग्रामविकास आदि अनेक कार्यों के माध्यम से परिसर मे रहनेवाले निवासियों के जीवन मे उन्होंने अमूलाग्र बदलाव लाये हैं. उन दोनों के जीवन पर आधारित अनेक डॉक्यूमेंट्रीज और लेख प्रकाशित हुए हैं. नाना पाटेकर एवं सोनाली कुलकर्णी द्वारा अभिणित "डॉ. प्रकाश बाबा आमटे- द रियल हीरो" नाम की मूवी भी उन दोनों के जीवन पर आधारित हैं.
ज्ञात हो कि गडचिरोली जिले मे स्थित भामरागड़ यह महाराष्ट्र का अत्यंत पिछड़ा तहसील हैं. आज भी भामरागड़ तहसील के कई सारे गावों मे बस सुविधा उपलब्ध नहीं हैं जिनमे से मेरा गांव कुक्कामेटा भी एक हैं. अभी तक हम लोगों ने गांव मे टेलीफोन भी नहीं देखा हैं. कुछ युवाओं के पास मोबाइल हैंडसेट तो आये हैं परंतु मोबाइल की रेंज केवल भामरागड़ मे ही मिलती हैं. अब कल्पना की जा सकती हैं कि डॉ. प्रकाश आमटे और उनकी पत्नी डॉ. मन्दाकिनी आमटे 1970 के दशक हमारे परिसर मे आते हैं! आज भी यह परिस्थितियां हैं तो उस समय की हालांतें क्या रही होंगी? सोचने भर से कुछ शहरी लोग डर से सिहर जायेंगे! उन दिनों हमारे क्षेत्र में चिकित्सा सुविधा नाम की कोई भी चीज उपलब्ध नहीं थी. लोगों का जीवन केवल ईश्वर के सहारे चलता था. ऐसे मे इन देवदूतों का हमारे परिसर मे आना हमारे लिए ईश्वर के वरदान से कम नहीं हैं. 23 दिसंबर 2023 को उनके द्वारा स्थापित "लोक बिरादरी प्रकल्प, ग्राम-हेमलकासा" इस जनकल्याणकारी संस्था के 50 वर्ष पूर्ण होने जा रहें हैं.
गत 8 जून को उन्हें ब्लड कैंसर हुआ हैं ऐसे डॉक्टरों को पता चला. उस समय वे प्रसिद्ध बी. जे. मेडिकल कॉलेज के दीक्षांत समारोह मे डॉक्टरों को डिग्रीयां प्रदान कर रहें थे. तेज बुखार एवं अत्यंत कमजोरी के कारण उन्हें पुणे के ह्रदयनाथ मंगेशकर अस्पताल मे भर्ती करना पड़ा. पिछले तीन चार वर्षों से उन्हें तेज बुखार अक्सर रहा करता था एवं कमजोरी भी रहती थी. परंतु सामाजिक गतिविधियों में उनकी अत्यंत व्यस्तता के कारण उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस समाचार से हम सभी भामरागड़वासी एवं सर्वदुर महाराष्ट्र और भारत भर उन्हें जाननेवाले सभी लोग चिंतित हो बैठे. ईश्वर कृपा से डॉक्टरों ने उनका सफल इलाज किया. अभी उनका स्वास्थ्य ठीक हैं और डॉक्टरों का कहना हैं कि उनका ब्लड कैंसर अभी बेअसर हुआ हैं. यह हम सभी के लिए अत्यंत राहत की बात हैं. उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए सारे महाराष्ट्र एवं भारत भर मे पूजा-पाठ, होम-हवन किये गए. मुझे लगता हैं यह उनके समर्पित एवं त्यागमय जीवन की फलनिष्पत्ती हैं. यही तो जीवन की सच्ची पूंजी हैं.
भामरागड मे जाने पर मैंने भाऊ (डॉ. प्रकाश आमटे) के दर्शन लिए. उनसे संवाद करते हुए मैंने अनुभव किया कि इस कर्मयोगी ने ब्रह्मत्व को प्राप्त किया हैं. मृत्यु के द्वार पर जाकर वापस आने पर भी कोई जीत का जल्लोष नहीं अथवा भविष्य मे इस प्रकार की तकलीफ और उभर सकती हैं इसका निमिष मात्र भी डर नहीं. मैंने उनके मुख पर केवल संतोष का भाव ही पाया. बचे हुवे जीवन के क्षणों मे समाज को और क्या दे सकते हैं इस बात की योजना पाई. मैंने अनुभव किया- यही तो हमारे सभ्यता के महान ऋषियों भी किया होगा इसलिए वे सभी हमारे लिए प्रातः स्मरणीय बने. यही जीवन की वास्तविक जमा पूंजी हैं, यही जीवन की सच्ची सार्थकता हैं. मैंने मन मे ही सोचा... "यद्यमे सफलम जीवन, यद्यमे धन्य जीवितम"
मैंने आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम मे हिंदी मे कविता पढ़ी थी. भाऊ से जब भी मिलना हुआ उस कविता का स्मरण मुझे सदैव हुआ....

मुस्काओ तुम नभ मे जैसे बाल अरुण मुस्काता!
गाओ जैसे रोज सबेरे चिड़ियों का दल गाता!

देखो कहती नदी कि हरदम सब की प्यास बुझाना!
घने पेड़ कहते हैं तुम सब को छाया पहुँचाना!

दीप सुलग कर कहता हैं, तुम ऐसी ज्योति जगाओ,
भटक रहें जो अंधकार मे उनको को राह दिखाओ!

अपने लिए जिए जो उसको क्या जीना कहते हैं?
जीते हैं वे ही जो ओरों हित दुख सहते हैं!

ओरों की विपदा मे आते जो आते हैं सब दिन काम,
वो नरवर कर जाते हैं सदा देश का नाम!

अपने सुर मे पवन उन्ही की गाता गौरव गाथा,
उनके आगे झुक जाता हैं बड़े-बड़ों का माथा!

उनके आगे फिके लगते हैं सब राजदूलारें,
क्योंकि हुआ करते हैं वे जग की आँखों के तारे!

विजयादशमी के पावन अवसर पर मा दुर्गा एवं प्रभू श्रीराम के पावन चरणों मे पूज्य भाऊ के उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रार्थनायें!

No comments:

Post a Comment