Saturday, 8 October 2022

आदरणीय हर्षजी चौहान, अध्यक्ष, राष्ट्रीय जनजाति आयोग





आदरणीय हर्ष चौहानजी के साथ मेरा परिचय लगभग पांच वर्ष पूर्व वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्त्ता के नाते हुआ. उनके सौम्य स्वभाव एवं समाज, विशेषकर जनजाति समाज के सर्वांगीण विकास लिए उनकी गहरी दृष्टि का मैं मुरीद हुआ. उनसे हुए प्रत्येक संवाद मे मैंने अनुभव किया कि उनके समाज के प्रति विचार केवल अकादमिक डिस्कोर्स तक सिमित नहीं हैं. उनकी शिक्षा पूर्ण होने के बाद से ही उन्होंने स्वयं को समाज कार्यों मे समर्पित कर दिया हैं. समाज के प्रति उनके विचार एवं दृष्टि समाज मे प्रत्यक्ष रहकर कार्य करने से प्रेरित हैं.

श्री. हर्ष चौहानजी का जन्म 8 अक्टूबर 1960 को हुआ. उनके पिता स्व. भारत सिंह चौहानजी स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने 14 वर्षों तक भूमिगत रहकर ब्रिटिशों के विरुद्ध क्रन्तिकारी आंदोलन चलाया था. वे 1967 से 1980 तक भारतीय जनसंघ से मध्य प्रदेश के धार लोक सभा चुनाव क्षेत्र से सांसद रहें. इसलिए समाज एवं राष्ट्र के लिए समर्पण भाव से कार्य करने के संस्कार श्री. हर्षजी को विरासत मे ही मिले. इस विरासत को जीवित रखते हुए वे इस पथ पर निरंतर कार्यरत हैं.

 

उन्होंने S.G.S.I.T.S. इस इंदौर स्थित प्रख्यात अभियांत्रिकी महाविद्यालय से Mechanical Engineering मे 1982 स्नातक की शिक्षा पूर्ण की. उसके उपरांत IIT, दिल्ली से 1984 मे उन्होंने Systems and Management मे M. Tech किया. उन्होंने 1990 मे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर से पत्रकारिता मे स्नातक भी किया हैं. 1988 से वे सामाजिक कार्यों मे सक्रिय हैं और जनजाति समाज के सर्वांगीण विकास को लेकर समर्पित भारत के सबसे बड़े संगठन, वनवासी कल्याण आश्रम में उन्होंने विविध प्रांतीय एवं राष्ट्रिय दाइत्वों का निर्वहन किया है. पद्मश्री आदरणीय महेश शर्माजी के साथ मिलकर उन्होंने 1998 में "शिवगंगा" (शिवगंगा समग्र ग्राम विकास परिषद्) इस संस्था की स्थापना की. 

"शिवगंगा" यह संस्था मध्य प्रदेश के झाबुआ इस दुर्गम जिले में कार्य करती है. बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई के कारण झाबुआ की जमीन बंजर हो गई थी. परिणामस्वरूप झाबुआ में रहनेवाले जनजाति समाज की उपजीविका छीन गई और उनका बड़ी संख्या में स्थलांतरण होने लगा. जनजातीय समाज के स्थलांतरण के मायने उनके शोषण से भी जुड़े होते है. आदरणीय श्री महेश शर्माजी और श्री हर्षजी ने साथ मिलकर इस समस्या पर उपाय ढूंढ़ने हेतु "शिवगंगा" की स्थापना कर जनजाति समाज में स्वाभिमान जगाया.

आज पारंपरिक जनजातीय  "हलमा" (सामूहिक श्रमदान) प्रथा को नवसंजीवनि देते हुए  शिवगंगा के असंख्य कार्यकर्ताओं ने बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण किया और बड़ी संख्या में छोटे तालाब बनाकर जलसंवर्धन किया. इससे झाबुआ में रहनेवाले  जनजातीय समाज को उनकी खोई हुई उपजीविका और एक बार प्राप्त हो रही है. इसीकी के साथ, "शिवगंगा" के माध्यम से  जनजातीय समाज का सामाजिक नेतृत्व खड़ा करना, वनीकरण, महिला सश्क्तिकरण, बिखरे हुए समुदायों को साथ में जोड़ना आदि कार्य सफलतापूर्वक किये जा रहे है.  

मेरे विचार में श्री हर्ष जी की राष्ट्रिय जनजाति आयोग के माननीय अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति यह समस्त जनजाति समाज के लिए शुभ संकेत है. उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा अभियांत्रिकी जैसे आकर्षक एवं उच्च वेतन देनेवाली शाखा से प्राप्त की है. पढाई के बाद उस समय जब निजी नौकरी के लिए विदेश जाने की होड़ लगी रहती थी, तब उन्होंने वनवासी समाज के बारे में सोचा और जीवन पर्यन्त जनजाति समाज के उन्नति के लिए कार्यरत रहने का निर्णय लिया.

श्री हर्षजी चौहान इंदौर संभाग के झाबुआ, जिसमे लगभग दो करोड़ जनजातीय समाज के लोग रहते है, मे पिछले 35 वर्षों से कार्यरत है. समस्त भारत भर के जनजातीय समाज से उन्होंने निरन्त सरोकार रखा है और उनसे जुड़े हुए विषयों का उन्होंने गहरा अध्यन किया है. उन्होंने जनजाति समाज के सामर्थ्य को समझते हुए परमार्थ की प्रेरणा से काम करने की पद्धति का विकास किया है. जनजाति समाज और नगरीय समाज में जो प्रतिमा और वास्तविकता का अंतर है उसे दूर करने के लिए वे निरंतर प्रयासरत है. स्वयं जनजाति समाज से आने के कारण उन्होंने जनजाति समाज की परम्पराएं एवं उनके आदर्शों की उपेक्षा देखि है. वर्ष 2021 के फरवरी माह में उनकी  राष्ट्रिय जनजाति आयोग के माननीय अध्यक्ष के रूप नियुक्ति के बाद से वे भारत के जनजाति समाज के संवैधानिक अधिकारों को लेकर और अधिक सक्रियता से कार्य कर रहे है.


राजनीति विज्ञान का छात्र और शिक्षक होने के नाते और काफी समय तक सिविल सेवाओं की तैयारी करने के कारण, मैं संवैधानिक निकायों के बारे में पढ़ता रहा हु और उनके अधिकार क्षेत्र एवं कार्यशैली को समझने का प्रयास करता रहा हु. राष्ट्रिय जनजाति आयोग के बारे में मेरी राय यह रही हैं कि वह राज्य एवं केंद्र में सरकारी नौकरियों  के  रोस्टर की विसंगतियां एवं काम की जगह पर भेदभाव के कुछ मामलों पर चर्चा करनेवाली संस्था मात्र बनकर रह गया था. आयोग के व्यापक कार्याधिकार की एक प्रकार से उपेक्षा ही होती दिखाई पड़ती थी.  श्री हर्ष चौहानजी के अध्यक्ष के दाइत्व पर नियुक्त हो जाने के पश्चात आयोग की व्यापकता को पुनः स्थापित करने के भरसक प्रयास उनके द्वारा किये जा रहे है.


पेसा अधिनियम, 1996 एवं  वन अधिकार अधिनियम, २००६ इन भारत सरकार द्वारा पारित दो अधिनियमों में जनजाति समाज के सांस्कृतिक जीवन को सम्बलता प्रदान   करते हुए उनके आर्थिक क्रियाकलापों में उन्ही की साझीदारी से आमूलाग्र सकारात्मक बदलाव के पर्याप्त प्रावधान है. परन्तु प्रशासकीय उदासीनता एवं जनजाति समाज में व्याप्त इन दोनों अधिनियमों की जानकारी के आभाव के कारण क्रियान्वयन में अनेक विसंगतियां पाई गई है. हर्षजी इन बाधाओं से अच्छे से परिचित रहे है. इसलिए आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहन करते ही उन्होंने इसपर कार्य कार्य करने की सकारात्मक पहलकदमी की. नीतिनिर्धारक, इन अधिनियमों के क्रियान्वयन से सम्बंधित जनजाति सहकारिता मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय के प्रशासकीय अधिकारी एवं जमीनी स्तर पर काम कर रहे विद्वान और कार्यकर्ताओं के मध्य "संवाद" का उपक्रम राष्ट्रिय जनजाति आयोग के मंच के तहत आयोजित किया गया. इस "संवाद" में पेसा एवं वनाधिकार अधिनियम के वास्तविक क्रियान्वयन से सम्बंधित मुद्दे एवं विसंगतियों पर विस्तृत चर्चा हुई और उनको दूर करने के प्रयास किये जा रहे है.    


पिछले एक वर्ष भर से हम पूरे देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. परन्तु ये हमारे लिए सोचने जैसी बात है क़ि आज़ादी के इतने वर्षों के पश्चात् भी हमने  जजातीय नायकों को हमारे स्कूली पाठ्यक्रम और शिक्षा में उचित स्थान नहीं दिया था. वनवासी कल्याण आश्रम और हर्षजी  के प्रयासों के कारण, 125 विश्वविद्यालयों में पूरे भारत में जनजाति  स्वतंत्रता सेनानियों एवं क्रांतिकारियों के विलक्षण योगदानों का स्मरण किया जा रहा है. इन कायक्रमों के  स्थान पर आयोग की जानकारी भी जनजातीय विद्यार्थी, शोधार्थी एवं युवकों को दी जा रही है ताकि भविष्य में वे इस संवैधानिक संस्था के कार्य एवं अधिकारों को जाने और अन्यों को भी बताएं.

देश भर के 125 विश्वविद्यालयों में आयोजित हो रहे "स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान" इस कार्यक्रम को लेकर मेरा भी आयोग के जानकर के नाते महाराष्ट्र के शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर एवं गोंड़वाना विश्वविद्यालय, गडचिरोली में जाना हुआ. इन कार्यक्रमों के दौरान अनेक लोग अपनी समस्याएं लेकर मेरे पास आएं और उन्होंने मुझे माननीय हर्षजी को उनसे अवगत कराने के लिए कहा. उनकी शिकायतों में मुख्य रूप से जाति प्रमाण पत्र जारी करना, कुछ जातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करना आदि शामिल हैं.

इस बारे में मैं विश्वास के साथ कह सकता हु कि माननीय हर्षजी पूरी ऊर्जा के साथ कार्य कर रहे है. परन्तु जनजाति समाज से सम्बंधित समस्याओं का स्वरुप बहुत जटिल है. कुछ चालाक लोग जनजाति समाज के मासूमियत का फायदा उठाकर अनुसूचित जनजाति के लोगों को मिलने वाले लाभों को हड़प रहे हैं. ऐसे में कुछ समस्याओं को सुलझाने में समय लगना स्वाभाविक है. हमें यह भी याद रखना होगा कि आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार केवल 3 वर्षों का है.  ऐसे में प्राथमिकताएं भी निश्चित करनी पड़ती है. जनजातीय समाज के सर्वांगीण विकास से जुड़ें व्यापक मुद्दे सुलझाने को लेकर माननीय हर्षजी का आग्रह है. हमें यह भी याद रखना आवश्यक हैं कि प्रमुखता से आयोग एक परामर्शकारी निकाय है, क्रियान्वयन के दाइत्व उसके अधिकारक्षेत्र मे अधिकतर नहीं हैं. मुझे जितना भी उनका सानिध्य प्राप्त हुआ है उसके आधार पर मैं यह पुरे विश्वास के साथ कह सकता हु कि उनका उद्देश्य जनजाति समाज के सर्वांगीण विकास को लेकर स्पष्ट और नेक है. 

उनके जन्मदिवस के शुभ अवसर पर आज उनको हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करते हुए उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए एवं समाज के विकास को लेकर उनके सभी कार्यों में निरंतर सफलता के लिए प्रभु चरणों में प्रार्थनाएं!

5 comments:

  1. अभ्यासपूर्ण लेख

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  2. फार सुंदर लिहिलंय सर... आपण मराठी भाषिक असूनही आपलं हिंदिवरील प्रभुत्व उल्लेखनीय आहे सर....

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  4. खूपच छान सर.... हर्षजी चौहान यांच्या व्यक्तीत्वाच अचूक शब्दात विवेचन मांडले... 👌👌👌

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