कर्नाटक विधानसभा चुनावों में आज कांग्रेस की भारी जीत कांग्रेस के आत्मविश्वास को बढ़ानेवाली घटना है और भाजपा के लिए झटका है। परन्तु यह निश्चित रूप से 2024 के आम चुनावों में क्या हो सकता है इसका संकेत नहीं है। हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनावों के अब तक के रुझान बताते हैं कि आगामी चुनावों में कोई भी पार्टी खुद को सत्ता में नहीं दोहराती है। यही ट्रेंड इन चुनावों में भी देखा जा सकता है।
2019 के
आम चुनाव से पहले छत्तीसगढ़, मध्य
प्रदेश और राजस्थान राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने जित हासिल
की थी। तब भी बहुत सारे राजनितिक पंडित यह कहते हुए दिखाई देते थे कि मतदाताओं के
मध्य में राहुल गाँधी की स्वीकार्यता और लोकप्रियता बढ़ी है। 2018 में 90 सीटों के लिए हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस ने 68 सीटें जीती थीं, जबकि सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने सिर्फ
15 सीटें जीती थीं। इसी तरह 2018 में 200 सीटों के लिए हुए राजस्थान राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 100 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी 73 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी। उसी
तर्ज पर 2019 में होने वाले आम चुनावों से ठीक पहले 2018 में, 230
सीटों के लिए हुए मध्य प्रदेश राज्य विधानसभा चुनावों में, , कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा ने 109 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस
पार्टी के नेतृत्ववाली सरकार मध्य प्रदेश राज्य में बनी थी।
राजनितिक पंडितों के तमाम अटकलों के बावजूद लोक
सभा के 2019 के
आम चुनावों में कांग्रेस का सफाया हुआ था। छत्तीसगढ़ के 11 लोक सभा सीटों में से केवल 2 सीटें कांग्रेस जित पाई थी और ९ सीटों
पर भाजपा ने जित दर्ज कराइ। मध्यप्रदेश के 29 लोक सभा की सीटों में से भाजपा 28 सीटें जीती जब की कांग्रेस ने केवल एक
सीट सफलता पाई। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि राजस्थान में 25 लोक सभा की सीटों में एक भी सीट
कांग्रेस नहीं जित पाई थी,
24
सीटें भाजपा ने जीती थी जबकि एक सीट लोक तांत्रिक पार्टी के खाते में चली गई थी।
हालाँकि, कर्नाटक
राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा हासिल की गई भारी जीत को कम नहीं किया
जा सकता है और न ही इसे कम किया जाना चाहिए। परन्तु कर्नाटक में संपन्न चुनावों से
यह बात और एक बार स्पष्ट हुई है कि जनता
राज्य के विधानसभा चुनाव और आम चुनाव के बीच अंतर करते हैं। आम चुनावों में
लोग राष्ट्रीय मुद्दों और राष्ट्रीय नेतृत्व की ताकत के आधार पर अपना वोट डालते
हैं। इसके विपरीत स्थानीय चुनावों में स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेतृत्व को
प्राथमिकता दी जाती है।
एक कहावत है कि बड़े पेड़ की छाया में छोटे
पौधे नहीं पनप सकते। इसलिए भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को स्थानीय
नेतृत्व के विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए। आगामी आम चुनावों में कांग्रेस
के उज्ज्वल भविष्य के बारे में कुछ राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियों से मेरी
पूर्ण असहमति के बावजूद, मुझे उनके विश्लेषण में कुछ सच्चाई
मिलती है कि कर्नाटक में भाजपा के पास योगी आदित्यनाथ, हेमंत बिस्व सरमा अथवा शिवराज सिंह
चौहान जैसे कद के स्थानीय नेता नहीं थे।
साथ ही यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि
प्रधानमंत्री जैसा मजबूत नेता स्थानीय नेतृत्व की ओर से ढुलमुल रवैया, अनुशासनहीनता या भ्रष्ट व्यवहार
बर्दाश्त नहीं करेगा। ऐसे में राष्ट्रिय नेतृत्व को कुछ सख्त कदम उठाने पड़ते है।
उसके परिणामों का अंदाजा होते हुए भी वे अपने फैसलों से पीछे नहीं हटते। लेकिन
लंबे समय में इस तरह के कड़े उपाय सकारात्मक परिणाम भी देते हैं।
अंत में मैं यह बिल्कुल नहीं मानता कि ये चुनाव
2024 में होने वाले आम चुनावों में लोगों की
पसंद को प्रतिबिंबित करते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता रेटिंग बहुत अधिक है। भारत में ऐसा कोई भी नेता
नहीं है कि जो लोगों के बीच लोकप्रियता के मामले में उनके करीब ठहरता हो। विपक्षी दलों की ओर से तीसरे
मोर्चे की बात दूर की कौड़ी नजर आती है। क्षेत्रीय दलों में खलबली मची हुई नजर आ
रही है। कांग्रेस को ढोल पीटने का पूर्ण अधिकार है लेकिन श्री राहुल गांधी अभी भी
अपनी राजनीतिक गतिविधियों के बारे में असंगत हैं। वे कभीभी उनके हिस्से में आए
अवसरों को विप्पतियों में बदल सकते है।
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