Sunday 16 May 2021

डॉ. राजेंद्र भारुड़, IAS से मिलें

डॉ. राजेंद्र भारुड़, स्वयं जनजाती समुदाय से आते हैं. वे वर्तमान मे महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के कलेक्टर के रूप मे नियुक्त हैं. उन्होंने कोरोना के पहली लहर से अनुभव प्राप्त कर दूसरी लहर के पूर्व ही अपने जिले मे ऐसी कुछ तैयारियां की जो कोरोना की इस दूसरी लहर से लोहा लेने मे बहुत कारगर साबित हुई.

अपने अनुभवों के बारे मे बताते हुए वे कहते हैं की अप्रैल के महीने मे उनके जिले 1100 से 1200 कोविड केसेस आते थे. हाल ही के दिनों मे वह अकड़ा 200 से 250 केसेस तक निचे आया हैं. उसके लिए उनकी लोकाभीमुख नीतियों को श्रेय देना होगा. एक प्रशासकीय अधिकारी चाहे तो अत्यंत कठीन परिस्थियों एवं अन्य अवरोधकारी शक्तियों के होते हुए भी बहुत कुछ कर सकता हैं. उसके लिए अपने दाइत्व के प्रती मानवीय संवेदनाओं का होना आवश्यक हैं. 

डॉ. भारुड़ ने आनेवाले समय की चुनौतियों को समय रहते ही अच्छी तरह से समझ लिया था. वे कहते हैं, पिछली कोरोना की लहर मे उनके जिले मे आरोग्य की सुविधाओं का अत्यंत अभाव था. परन्तु उन्होंने केवल शिकायत करते हुए निष्क्रिय बैठे रहने के बजाय विश्वभर मे चलते कोरोना महामारी के ट्रेंड्स पर ध्यान रखा. चुंकि वे खुद भी डॉक्टर हैं, (बतादे के उन्होंने GSMC मुंबई से MBBS की पढ़ाई की हैं) उन्होंने मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता को पहले से ही समझा. समय के रहते ही उन्होंने अपने जिले मे तीन ऑक्सीजन प्लांट लगवा लिये थे. सनद रहें की महाराष्ट्र के आदिवासी जिले नंदुरबार में पिछले साल के कोविड प्रकोप तक एक भी ऑक्सीजन प्लांट नहीं था. यह सब करने के लिए उन्होंने जिला विकास योजना कोष, राज्य आपदा प्रबंधन राहत कोष, कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) से पैसे खड़े किए.

 डॉ. भारुड़ केवल ऑक्सीजन प्लांट लगाकर नहीं रुके बल्की उन्होंने उपलब्ध निधी का उपयोग करते हुए जिले मे अबुलेंस सेवाओं का भी जत्था खड़ा किया. इसके साथ उनके नेतृत्व मे नंदुरबार जिला प्रशासन ने केंद्रीकृत कोविड नियंत्रण कक्ष की स्थापना करना, वास्तविक समय मे जानकारी प्रदान करनेवाली अध्यतन वेबसाइट का निर्माण करना आदि नावाचारों का समावेष भी कोविड से लड़ाई मे किया. डॉ. भारुड़ कहते हैं की, बहुत सारी कॉर्पोरेट कम्पनियाँ सामाजिक जिम्मेदारी के माध्यम से CSR मदत निधी देना चाहती हैं. आवश्यकता हैं की हम उनतक पहुंचे.

डॉ. भारुड़ के अथक एवं नवाचार युक्त प्रयासों के कारण नंदुरबार जिले मे स्थित केवल 20 ऑक्सीजन एवं वेंटीलेटर युक्त बेड की संख्या वर्तमान मे 1200 बेड तक पहुंची हैं. उनके प्रशासन ने जिले मे स्तित सारे स्कूल, छात्रावास एवं धर्मशालाओं को आइसोलेशन केंद्रों मे परिवर्तित करते 7000 बेड्स का निर्माण किया हैं. इसीके साथ मे 50 कोरोना मरीजों के पीछे एक ऑक्सीजन नर्स को नियुक्त करते हुए नियमितता से उनके SPO2 पर ध्यान रखने का दाइत्व उनपर सौपा गया. इसके कारण किसी भी कोरोना रोगी का SPO2 का स्तर जब भी गिरने लगा, तुरंत उपचार देने मे देरी नहीं हुई. कोरोना के उपचार सम्बंधित इस रणनीती के कारण बहुत सारे मरीजों के जीवन बचाए जा सके. इसकी सफलता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकारने 'नंदुरबार पैटर्न' को लागु करने के निर्देश सभी जिलों के प्रशासकीय अधिकारीयों कों दिए. केंद्र सरकारने भी डॉ. भारुड़ के कार्य की प्रशंसा की हैं.

डॉ. भारुड़ कहते हैं की किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए संवेदनशीलता का होना आवश्यक हैं. चुंकि वे नंदुरबार जिले के ही ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं, वहां के लोगों की समझ, संवेदनाओं से वे परिचीत हैं. उन्होंने नंदुरबार जिले मे शिक्षक एवं मुख्य अध्यापकों की सहायता से लोगों को कोरोना महामारी के सन्दर्भ मे सजग किया. उन्हें कोरोना के टिके के महत्व को समझाते हुए उनका टीकाकरण करवाया. परिणामस्वरूप नंदुरबार जिले मे कोरोना के फैलाव को नियंत्रण मे रखा जा सका.


डॉ. भारुड़ का जन्म नंदुरबार जिले के एक छोटे गांव मे हुआ. उनके जन्म के पूर्व ही उनके पिताजी का स्वर्गवास हुआ. उनके माताजीने अनेक कठनाईयों का सामना करते हुए, खेत मजदूरी करते हुए उन्हें बड़ा किया और पढ़ाया. उनकी 12 वी तक की पढ़ाई नवोदय विद्यालय मे हुई. सनद रहें की नवोदय विद्यालय, केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक जिले मे न्यूनतम एक की संख्या मे चलाए जा रहें गुणात्मक शिक्षा देनेवाले केंद्रीय विद्यालय जैसे शिक्षा संस्थान हैं. शिक्षा के आलावा छात्रों का निवास, भोजन, पुस्तके, कपडे आदि. सारी सुविधाएं केंद्र सरकार ही वहन करती हैं. कक्षा पाँचवी मे प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से मेधावी छात्रों का चयन नवोदय विद्यालयों मे होता हैं. इन विद्यालयों मे पढ़नेवाले अनेक छात्र समाज के अनेक क्षेत्रों मे अनन्यसाधरन कार्य कर रहें हैं.

चिंता की बात यह हैं की नवोदय विद्यालयों का स्तर पिछले कई सालों से लगातार बिगड़ता जा रहा हैं. उनमे कई शिक्षक अस्थाई रूप से अभी पढ़ा रहें हैं. जो शिक्षक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो वह अपनी पूर्ण ऊर्जा विद्यार्थियों को पढ़ाने मे कैसे लगा पाएंगे? इसलए आनेवाले दिनों मे ऐसे विद्यालयों का स्तर मजबूत करने के साथ ही उनकी संख्यात्मक एवं गुनात्मक वृद्धि पर बल देने की आवश्यकता हैं. इसीके साथ नितिगत स्तर पर शिक्षा एवं आरोग्य इन दो बुनियादी सुविधाओं पर हमारे राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय आर्थिक बजट बड़ा हिस्सा खर्चा करने की आवश्यकता हैं. इस घोर कोरोना महामारी के चलते कई बच्चे अनाथ हो चुके हैं. उनकी शिक्षा एवं लालन पालन का दाइत्व राज्य और हमारे समाज को उठाना ही होगा. इसके लिए नागरिक समाज को अपना दाइत्व निभाने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाना पड़ेगा. 

हमारे समाज के कुछ लोग आरक्षण का विरोध यह कहते हुए करते हैं की आरक्षण के कारण मेरिट का स्तर बिगड़ता जा रहा हैं. क्या यह लोग डॉ. भारुड़ के मेरिट पर भी सवाल खड़ा करेंगे? जिनपर सामंती मानसिकता का भुत अभी भी सवार हैं, शायद वे डॉ. भारुड़ जैसे मेधावी और लोकाभीमुख प्रशासकों की निंदा करने मे भी कोई कसर नहीं छोडेंगे. उनका कुछ नहीं किया जा सकता. आरक्षण नहीं होता तो शायद डॉ. भारुड़ नवोदय विद्यालय नहीं पहुँचते, डॉक्टर और IAS नहीं बनते.

Intelligence Quotient अथवा Emotional Quotient नहीं बल्की Emotional Intelligence Quotient की क्षमता रखनेवाले लोगों की आवश्यकता शाश्वत विकास के भाव पर आधारित समाज को हैं. हमारे शिक्षा संस्थानों मे एवं प्रशिक्षण अकादमियों मे इसी बात पर बल देने की आवश्यकता हैं. मेरिट मे आकर बड़े बड़े मेडिकल कॉलेजेस मे पढ़नेवाले कितने डॉक्टर्स ग्रामीण क्षेत्रों मे सेवा देने के लिए राजी होते हैं? ग्रामीण क्षेत्रों से आनेवाले डॉक्टर् ही प्राथमिक आरोग्य केंद्रों मे प्रायः सेवा देते हुए दिखाई देते हैं. डॉ. भारुड़ जैसी क्रियाशीलता अन्य जिलों के कलेक्टरों ने क्यों नहीं दिखाई? मेरिट अगर स्वयं तक ही सिमित एवं करियरिस्टिक बनकर रह जाए तो उसका क्या उपयोग?

सभी बच्चों मे डॉक्टर्, इंजीनियर, आय. ए. एस. आदि बनने की क्षमता होती हैं यह नहीं कहा जा सकता अथवा सभी को ऐसे अवसर प्राप्त नहीं होंगे. परन्तु क्या किसान की बेटी या बेटा केवल किसान ही बनकर रह जाए? क्या मजदूर अथवा मेहनतकश इंसान की संतान अपने माता पिता के व्यवसाय मे ही ठिठक कर रह जाए? अगर ऐसा होता हैं तो भविष्य की ओर बढ़नेवाले हमारे राष्ट्र की गती थम कर रह जाएगी. समाज और राष्ट्र विघातक ताकतें वंचित समाज घटकों कों अपने बेईमान इरादों के पूर्ती के लिए उपयोग मे लाएंगी.

मेधा या मेरिट किसी को भी विरासत मे मिलती हैं अथवा नहीं मिलती हैं ऐसा नहीं हैं. अंतर केवल इतना ही हैं हमारे समाज के कुछ घटक ऐतिहासिक कारणों से पिछड़ गए हैं. 'जो भाई भटके बिछड़े' हाथ पकड़ ले साथ चले' इसी भाव को लेकर हमें आगे बढ़ना होगा. तभी समतमूलक समाज निर्माण का हमारा राष्ट्रीय सपना पूर्ण होगा.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

3 comments:

  1. Dr राजेंद्र भारुड एक आदर्श जिल्हाधिकारी आहेत.माझे मित्रा लालाजी नंदरे यांचे ते विद्यार्थी आहे.dr rajendra bharun yanche karyas salam.ma tyanche shi don minute bolane pan zal aahe.

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