Thursday, 6 May 2021

कोविड महामारी से संघर्ष एवं राष्ट्रिय एवं अंतरराष्ट्रीय समाज का दाइत्व


आदर पुनावाला का इस भयंकर कोरोना महामारी के मध्य मे भारत छोड़ जाना बहुत ही व्यथित करनेवाला है. उन्होंने टाइम्स को दि हुई इंटरव्यू मे कहा है की उन्हें धमकियाँ दि जा रही है, उनपर बहुत दबाव बनाया जा राहा है. अभी ये सब कौन कर राहा है इसकी छानबीन कर उन्हें कड़ी सजा देने की आवश्यकता है. हमारे देश मे बड़े उद्योजाकों को इसतरहा प्रताड़ित किया जाना यह कोई पहली घटना नहीं है. हाल ही मे हमने देखा है की किस तरह बम की सामग्री लेस एक कार मुकेश अम्बानी के घर के बाहर रखी गई थी. उनको कौन डराना चाहता था यह अभी ठीक से स्पष्ट नहीं हो पाया है. सचिन वझे आदि लोग बस कठपुतलीया है. उनके पीछे बड़े राजनीतिक या अंडरवर्ल्ड के लोग या इन दोनो का सयुंक्त साझेदारी वाला गिरोह होगा यह कोई छोटा बच्चा भी समझ सकता है.

हमारे देश मे एक समूह है जो यशस्वी लोगों को तिरस्कार की दृष्टी से देखता है. उन्हें डिमनाइज करने मे कोई कसर नहीं छोड़ता. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी 'हम दो हमारे दो' इस प्रकार के कुटुंब नियोजन से सम्बंधित प्रचार नारों को किस तरह भद्दे तरीके से इस्तेमाल करते है यह हम सभी जानते है. 'ट्रिकल डाउन' इफेक्ट से मैं भी सहमत नहीं हु. भारत जैसे देश मे सारा का सारा आर्थिक नियमन बाजार व्यवस्था के हाथो छोड़ा जाना योग्य नहीं है यह मेरा दृढ़ विश्वास है. पर क्या मृतपाय नियंत्रित आर्थिक नीतियों कों अपनाना योग्य पहल कदमी होंगी? कतई नहीं. चीन जैसे तथाकथित सर्वाहारा की तानाशाही वाले देश मे किसतरह सर्वतः पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के माध्यम से आर्थिक विकास अपनाया जा राहा उसका उदाहरण हमारे समक्ष है.

इसलिए पूंजीवाद के साथ ही कल्याणकारी राज्य  भारत जैसे लोकतान्त्रिक परिप्रेक्ष मे कारगर साबित होगा यह मेरा मानना है. कल्याणकारी राज्य से मेरा मतलब यह नहीं की समाज के सारे क्रियाकलापों पर राज्य का नियंत्रण हो. ऐसा करना हमारी समाज रचना को प्रभावित करेगा. हमारे समाज के  बहुत सारे रीती-नियम समाज को जोड़ने मे और उसे अधिक समावेशक बनाने मे उपयोगी है. पर जो इसके विपरीत होंगे उनपर राज्य का नियंत्रण होना आवश्यक ही है. कोविड महामारी के चलते हुए भी हमारे देश मे जिस प्रकार मजहाबी जमघट जमते है अथवा धार्मिक अनुष्ठान कीए जाते है वे कतई स्वीकार्य नही है. किसी भी व्यक्तीसमूह अथवा संगठन द्वारा ऐसे कृत्यों का समर्थन नही करना चाहिए.

हमने अनुभव किया है की इस महामारी के समय मे भी कुछ लालची तत्वों द्वारा किस तरहा ऑक्सीजन सिलिंडर, रेमडेसीवीर के इंजेक्शन और अन्य जीवनावश्यक वस्तुओं की जमाखोरी की गई. जमाखोरी की गई दवाइयाँ, उपकरण और वस्तुएँ तिगुने, चौगुने और कितने गुने दाम बेचीं गई इसके कई घृणास्पद प्रमाण हमने देखें, सुनें. क्या यह प्रवृत्ति हमारी सभ्यता की परिचायक है? अथवा समाज बहुत आगे निकल चूका है और गत काल के अच्छे सामाजिक आचरणों को भूला चूका है? क्या स्वयंकेंद्रितता हमारे निजी एवं सामाजिक व्यवहार का हिस्सा बन चुकी है? या मानव प्राणी की अच्छाई को हमने कुछ ज्यादा आँका था? इसमें हमें जरा भी संदेह नहीं होना चाहिए की इस अँधेरी रात मे कुछ जलते सितारे जरूर है. परन्तु उनकी संख्या कितनी है? व्यक्तियों का मिलकर ही समाज बनता है. स्वार्थी, स्वयंकेंद्रित, लालची प्रवृत्ति वाले व्यक्ति या उनके समूह का जब समाज मे बोलबाला बढेगा, उत्पादन के संसाधनों पर उन्ही का नियंत्रण स्थापित होगा तो फिर समाज का नियंत्रण कौन करेगा? मुझे लगता है, वह कार्य राज्य करेगा!

तो फिर मेरे मन सवाल आता है, उस राज्य की प्रकृती क्या होनी चाहिए? सर्वहारा की तानाशाही(dectatorship of proletariat) वाले राज्य का दम्भ हमने विश्वभर मे अनुभव किया है. वर्गविहीन समाज रचना के नाम पर कैसे नए वर्गों को जनम उन राज्य व्यवस्थाओं ने दिया यह बात किसी से छुपी नहीं है. राज्यविहीन समाज का 'कल्पना विलास'(utopia) तो बहुत दूर की बात हुई परन्तु इस प्रकार की व्यवस्थाओं मे अधिक शोषण और दमन पर आधारीत नए वर्गों का निर्माण हुआ. सोवीएट यूनियन, चीनी जनवदी गणराज्य, वेनेजुएला क्यूबा आदि साम्यवादी राज्यों मे लोकतान्त्रिक एवं मानवी अधिकारों का अत्याधिक हिंसा द्वारा दमन निरंतर होता राहा.  इसी के साथ पश्चिम बंगाल जैसे भारतीय संघीय संरचना के एक संघीय घटक राज्य मे साम्यवादी पार्टियों के 34 साल के शासनकाल के दौरान हिंसा और दमन के दौर को भी कैसे भुलाया जा सकता है. हिंसा की वह प्रकृती वहां आज भी विद्यमान है. दूसरे साम्यवादी राज्य केरल मे भी इस प्रकार की हिंसात्मक घटनाए समय समय पर उभार लेती रहती है.

तो क्या फिर हम ऐसे राज्य की अपेक्षा करें जो अबंधन या स्वेच्छा व्यापार (Laissez Faire) सिद्धांत द्वारा संचलित हो की जिसमे बाजार व्यवस्था का अदृश्य हाथ संसाधनों का वितरण करेगा? क्या मुक्त बाजार की कल्पना वाकई मे मुक्त है? क्या इस कल्पना के पुरस्कार्ताओं द्वारा प्रायोजित पूर्ण प्रतियोगिता,आर्थिक संतुलन आदि शब्दजाल वाकई वास्तव मे उतर पाए है? मैं कोई अर्थशास्त्री तो नहीं और नाही मुझे इन संज्ञाओं की जटीलता की समझ है. परन्तु यह आर्थिक व्यवस्था जब भी अपने ही लालच एवं स्वार्थ के बोझ तले दबने लगी तो उसने अपने बचाव के लिए राज्य को आमंत्रित किया.उदाहरण के लिए 1929-1939 के वैश्विक महामंदी से निर्मित आर्थिक संकटों से निपटने के लिए  'न्यू डील' या 'मार्शल प्लान' जैसी योजनाओं के माध्यम से डूबती हुई अर्थव्यस्ताओं को राज्य ने सवारा, 2007-08 मे उभरे सबप्राइम मोर्टगेज क्राइसिस मे भी यही हुआ. इसलिए मुक्त बाजार प्रणाली के समर्थकों के द्वारा प्रायोजित अपनाही उल्लू सीधा करनेवाला यह चयनात्मक, स्व-केंद्रित और स्वार्थी दृष्टिकोण अस्वीकार्य और निंदनीय है यह मेरा मानना है.

कोविड की इस वैश्विक महामारी की वजह से विश्व मे सभी ओर हताशा का वातावरण है. विकासशील देशों मे परिस्थियां तो और भी गंभीर है. भारत मे वर्तमान मे प्रतिदिन का मरीजों का आंकड़ा साढ़े तीन लाख से चार लाख की संख्या मे है और हजारों लोग प्रतिदिन मर रहें है. ऐसे मे भारत और साउथ अफ्रीका जैसे देश विश्व व्यापार संगठन मे वैक्सीन के पेटेंट्स पर छूट को लेकर विकसित देशों के पास पिछले साल से गुहार लगा रहें है. यूरोपीयन यूनियन और अमरीका जैसे पावरफुल ब्लॉक्स का 'पेटेंट्स पर छूट' को समर्थन मील जाए तो वैक्सीन का निर्माण बडी मात्रा मे भारत मे संभव होगा.

भारत मे 3000 से ज्यादा फार्मा कम्पनी है और उनकी 10,000 से ज्यादा प्रोडक्शन फेसिलिटीज है. पेटेंट्स पर छूट से इस इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करने मे आसानी होंगी और भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश की वैक्सीन की जरूरतों की पूर्ती जल्द से जल्द करना संभव होगा. अन्यथा लाखों की संख्या मे लोग मरते रहेंगे. मौजूदा परिस्थितियों मे एक ताज़ा अनुमान के अनुसार विश्व के सभी देशों को मिलाकर 200 करोड़ इतनीही वैक्सीन है. और याद रहें की वैक्सीन के दो डोजेज दिए जाते है. वर्तमान मे उपलब्ध वैक्सीन तो केवल भारत के लोगों की अवश्यकताओं की पूर्ती भी नहीं कर पाएंगी.

वैक्सीन पर छूट के प्रस्ताव को लेकर बुधवार को हुई बैठक मे भारत और साउथ अफ्रीका के प्रस्ताव का अमरीकी राष्ट्रध्यक्ष जो बिडन ने समर्थन किया है. इसीके साथ यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों ने भी इस प्रस्ताव का स्वागत किया है. यह अखिल मानवी समुदाय के हित मे सराहनीय पहलकदमी है. ये सारे देश अभी तक इस मांग का पुरजोर विरोध कर रहें थे. इसलिए मैं इसे भारत की कूटनीतिक जीत मानता हु.पर अभी भी यूनाइटेड किंगडम ने, की जहा आदर पुनावाला आश्रय लेकर बैठे है, इस प्रस्ताव का विरोध किया है. वैश्विक फार्मा लॉबी इस प्रस्ताव के खिलाफ मोर्चा खोलने की पुरजोर तैयारी कर रही है. क्या मानव जाती को कोविड के इस महामारी से बचाने के लिए पेटेंट्स पर छूट मील पायेगी? यह तो आनेवाला समय ही बताएगा.

आखिर यह विश्व की बड़ी फार्मा कम्पनियाँ वैक्सीन के पेटेंट पर छूट का विरोध क्यों कर रही है? वो इसलिए की उनको मिलनेवाला मुनाफा कम हो जायेगा. इस महामारी के समय मे भी यह कम्पनियाँ भारी मुनाफे पर नजर लगाएं बैठी है. इतना ही नहीं इन कम्पनीयों के प्रबंधन ने यूरोप और अमरीकी सरकारों के पास पेटेंट्स पर छूट ना दी जाए इसके लिए करोड़ों डॉलर का खर्चा करके लोबिंग की है. ऐसी छूट मील जाए तो इनके पैसे तो डूब गए. क्या आदर पुनावाला जैसे लोग भी इसी कड़ी का हिस्सा तो नहीं? इस बात की शंका मेरे मन मे इसलिए भी उठती है क्योंकि वैश्विक फार्मा कम्पनीयों के महत्वपूर्ण सगठनों के वे सन्माननीय सदस्य भी है.

क्या यह बड़ी कम्पनियाँ वाकई मे छोटी कम्पनियों को फार्मा बाजार मे टिकने देगी? मेरी समझ मे नहीं. तो किस बात की पूर्ण प्रतियोगिता और मुक्त बाजार व्यवस्था? मानवी भाव भावनाएं पैसों के आगे तो कोई मायने ही नहीं रखती. पर इनके द्वारा प्रायोजित कुछ लोग इनका समर्थन करते हुए सारा बौद्धिक शब्दछल करने मे कोई कसर नहीं छोड़ते.
इसलिए मुक्त बाजार व्यवस्था के नियमों का पालन होता है या नहीं इसपर निगरानी राज्य को ही रखनी होंगी. इसकी के साथ बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को निगल ना जाए इस बात को भी राज्य को ही सुनिश्चित करना होगा.

भारत जैसे इतनी तीव्र असमानता वाले देश मे तो राज्य की भूमिका अधिक प्रासंगिक बनती है. सार्वजानिक आरोग्य, शिक्षा आदि हमारे मानवसंसाधन को प्रभावित करनेवाले बुनियादी क्षेत्रों मे सरकार की भूमिका कई अधिक गुना बढ़ने की आवश्यकता है. तभी जाकर महात्मा गांधी जी, पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी जैसे हमारे मनीषीयों के सपनों के भारत का निर्माण करने मे हम सफल होंगे.

कोविड जैसी वैश्विक समस्याओं का समाधान भी वैश्विक रणनीती से ही संभव है. किसी एक राज्य के प्रयासों से ऐसी भयावह परिस्थितियों का हल नहीं निकाला जा सकता. इसलिए आवश्यक है की कोविड जैसी वैश्विक विपदाओं से निपटने के लिए सारा वैश्विक समुदाय एक साथ जुट जाए. कॉर्पोरेट लालच को नजरअंदाज करते हुए ऐसे व्यक्ती एवं सगठनों को यह समझाने की आवश्यकता है की यह समय उनके लालच की पूर्ती का नहीं अपीतु मानव जाती को बचाने का है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सब तभी संभव होगा जब बहुपक्षीय संस्थाओं(multilateral institutions) को मजबूत किया जायेगा और उनके प्रती श्रद्धा का भाव सभी राष्ट्रों मे स्तापित होगा.

 

20 comments:

  1. Extremely cogent and well articulated musings on many vital issues. Congratulations.

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    1. Namaskar Sir🙏. Thank you so much for reading and commenting on my blog. I feel a lot more encouraged and enthused 💐

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  2. आपकी अग्रेजी तो लाजवाब हैं... हिंदी पर भी आपका अच्छा प्रभाव है.. मौजुदा हालात के सभी पैलूओपर आपने खासा प्रकाश डाला है...
    लिखते रहिये सर

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  3. Well articulated thoughts Vivek.
    This pandemic teaches a big lesson to developing nations like India. While private and corporate hospitals are required , government hospitals only can provide medical services to poor and middle class in pandemic like situations. Therefore we need more government hospitals in cities. Better infrastructure in rural phc. Though phc are present in villges but without dictor. More doctors, nurses and other medical staff. In budget allocation Healthcare and education should be given same importance as defence.

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    1. Thank you for reading Guru. You are so absolutely right. Do take good care of yourself 🙏💐

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  4. Well articulated thoughts Vivek.
    This pandemic teaches a big lesson to developing nations like India. While private and corporate hospitals are required , government hospitals only can provide medical services to poor and middle class in pandemic like situations. Therefore we need more government hospitals in cities. Better infrastructure in rural phc. Though phc are present in villges but without dictor. More doctors, nurses and other medical staff. In budget allocation Healthcare and education should be given same importance as defence.

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  5. Nice
    Faithful International Relations and International cooperation required to control such situation

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  6. खूप छान लिहीलात.अभिनंदन!

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  7. "यह समय लालच पूती का नहीं बल्कि मानव जाति को बचाने का है!" बहुत खूब सर जी! I liked it so much.

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