Saturday, 8 May 2021

हमारे घनश्याम का चले जाना और नकारात्मकता फैलानेवालों से कुछ सवाल

 

अभी 24 दिन होगए मेरा छोटा चचेरा भाई घनश्याम हमको छोड़कर चला गया. उसकी हसती हुई सौम्य मुद्रा मेरे मन मश्तीष्क मे आज भी ताजी है मानों वह हमारे मध्य मे ही है.

 हमारे गांव मे तीसरी कक्षा तक ही स्कूल थी. उसके बाद की मेरी पढ़ाई छात्रावासों मे रहकर ही हुई. परिवार की आर्थिक परिस्थितियां नाजुक होने के कारण छूटीयों मे दूर दूर गावों मे बसें रिश्तेदारों से मिलना नहीं होता था. प्रवास के लिए पैसे ही नहीं थे. थोड़े बड़े हुए तो छूटीयों मे छोटा मोटा काम करके पढ़ाई के लिए पैसा जुटाते. ऐसे मे रिश्तेदारों से भेट करने के लिए समय कैसे निकालते?

 घनश्याम को मेरे M. Phil. होने के बाद दिल्ली मे मिलना हुआ. उसका बड़ा भाई मनोज Air Force, दिल्ली मे पोस्टेड था. उसने ही घनश्याम से मिलवाया. तब तक वह नागपुर विश्वविद्यालय से M. A.(Geography) गोल्ड मेडल लेकर हुआ था. NET, JRF भी उसने पास कर लिया था. हाल ही मे उसने नागपुर विश्वविद्यालय मे Ph. D. मे रजिस्टर करवा लिया था. चुंकि मेरा M. Phil. हुआ था, मनोज का मानना था की रिसर्च के बारे मे मेरी थोड़ी बहुत समझ है. तब मैं एक सांसद के स्वीय सचिव के तौर पार्लियामेंट मे काम कर राहा था, उन्ही के सरकारि निवास मे रहता था. घनश्याम मेरे पास ही कुछ दिन ठहरा था.


 शोध के प्रती उसके ललक को देखकर मैंने उसे आग्रह किया था, चुंकि उसके पास JRF है, उसने अछे संस्थान से Ph. D. करनी चाहिए. परन्तु सौभाग्य से चंद्रपुर के खत्री महाविद्यालय मे असिस्टेंट प्रोफेसर की परमानेंट नौकरी उसे मील गई. उसने नौकरी करना चुन लिया. उसके टॉपिक पर बहुत ज्यादा तो मैं उसका मार्गदर्शन नहीं कर सकता था, परन्तु नियमितता से मेरे सम्पर्क मे घनश्याम बना राहा.तब तक सांसद की नौकरी मैंने भी छोड़ दी थी और दिल्ली विश्वाविद्यालय के श्याम लाल महाविद्यालय मे मैंने भी जॉइन कर लिया था.

दिसम्बर 2019 मे मेरे छोटे भाई सदाशिव का विवाह था. उसके विवाह के एक दिन पूर्व ही मैं दिल्ली से चंद्रपुर पहुंचकर घनश्याम के घर ठहरा था. सदाशिव के विवाह के दिन ही मैं और घनश्याम मंगलकार्यालय, जहा सदाशिव का विवाह होना था, पहुंचे थे. घनश्याम मुझसे कहने लगा... दादा हम छोटे भाई एक के बाद एक शादी कर रहें. तुम अभी तक नहीं कर रहें हो. हमें यह अच्छा नहीं लगता. मैंने भी उसकी उसकी बात को टालते हुए मज़ाक मे कह दिया... अरे घनश्याम तेरी बड़ी मा और बड़े बाबा ने मेरा नाम विवेकानंद रखा, कुछ सोचकर ही रखा होगा ना! उसपर वह चुप रह गया था. वैसे भी वह कम ही बोलता था. उसने मुझे कहा था... दादा तुम्हारे सर के बाल सफ़ेद हो गए है. कल सदाशिव दादा की शादी है. तुम्हे थोड़ा ठीक दिखना चाहिए. आओं मैं तुम्हारे बालों को काले कर देता हु. बड़े प्यार से उसने मेरे बाल रंगा दिये थे. उसकी कितनी सारी यादें है!


पिछले वर्ष नवंबर मे उसका विवाह हुआ था. उसकी पत्नी प्रेग्नेंट है.  कुछ ही मास पूर्व वह 31 वर्ष का हुआ था. मैं उसे कहता था... तेरा बहुत लम्बा करियर है. जितना ज्यादा हो सके नई चीजें पढ़. थ्योरी और प्रैक्टिस मे मेल बिठाने की कोशीश कर. वह भी कहता था... हा दादा, अवश्य प्रयास करूंगा और वह सारे प्रयास कर राहा था. कुछ ही दिनों मे अपने महाविद्यालय के एक अच्छे प्राध्यापक के रूप मे उसने अपने को सिद्ध किया था. NAAC का महाविद्यालय का मूल्यांकन हो या अन्य कार्यक्रम हो वह सदैव अग्रणी भूमिका मे रहता था. अपने उन अनुभवों को बड़े उत्साह के साथ मेरे साथ साझा करता था. ऐसा होनहार युवा इस दुनियां को छोड़कर कभी न लौटने के लिए चला गया! इसमें उसके परिवार, समाज और देश की क्षती है.

अभी मुझे पता चला है की वह कोविड से पीड़ित था परन्तु मृत्यु के अंतिम दिवस तक उसने अपना टेस्ट नहीं करवाया था. वह किसी डॉक्टर की सलाह पर  कुछ प्रकार का चिकित्सा उपचार ले राहा था. यह सब तब किया जा राहा था जब इस वुहान विषाणु की खबरे दूर तक फैली थी! इसप्रकार की कोताही, अवैज्ञानिक रवैय्या उसकी जान ले गया.

इस घटना का एक व्यापक पहलु है. इस बीमारी को नियंत्रित अथवा प्रतिबंधित करनेवाला वैक्सीन जब उपलब्ध होने लगा, सरकार वैक्सीन का टिका लगाने पर जोर देने लगी तब हमारे राजनीतिक विपक्ष के लोग इसके खिलाफ बोल रहें थे. वैक्सीन को 'मोदी वैक्सीन' कहकर उसका उपहास कर रहे थे. वैक्सीन को लेकर तरह तरह की अफवाहे फैली हुई थी. जिसके कारण इस वुहान विषाणु की दूसरी लहर हम सभी तक पहुँचने तक वैक्सीन को लेकर डर या शंका का वातावरण बना हुआ था. कुछ लोग तो कह रहें थे की बीमारी कुछ भी हो कोविड घोषित किया जाता है. डॉक्टर पैसे लुटते है और मरीजों को मार देते है. क्या घनश्याम भी इसी अपप्रचार का बली तो नहीं चढ़ा? अगर ऐसा है तो इस बीमारी को लेकर सामान्य लोगों की सोच क्या रही होंगी? याद रहें हमारा घनश्याम प्रोफेसर था, वह चंद्रपुर मे किसी सरकारि कोविड केयर सेंटर का प्रभारी था. इसका मतलब वह फ्रंटलाइन कोविड वारियर्स मे से था. उसने अपना टिका क्यों नहीं करवाया?

हमारी राजनीतिक व्यवस्था के विपक्ष के नेताओं के पास इतना समय तो जरूर है की वह किसान आंदोलकों को उकसाए, उनसे यह कहलवाएं की कोविड के नाम पर मोदी सरकार उन्हें डराकर धारणस्थलों से भगाना चाहती है, उन्हें CAA के खिलाफ भड़काए और सारे देश मे भय का माहौल बनाए. परन्तु इस वुहान विषाणु से विश्व भर मे फैली बीमारी से लोगों को सचेत करने के लिए उनके पास जरा भी समय नहीं है. अब यही लोग मोदी सरकार को कोस रहें है की उसने वैक्सीन बाहर के देशों को मदत के रूप मे क्यों भेजी. हैरानी की बात तो ये है की यह जमात अभी कहने लगी है...भारत सरकार दुनियां के अन्य देशों के साथ इस बीमारी से सम्बंधित आंकड़े साझा न करके दुनियां को खतरे मे डाल रही है. वुहान विषाणु को अभी भारतीय विषाणु के रूप मे स्तापित करने मे देश विरोधी ताकतों का साथ दे रही है.

मुझे इस बात से जरा भी इनकार नहीं है की भारत की सभी केंद्र और राज्य सरकारों ने इस बीमारी से लड़ने मे ढीलाई बरती. अगर समय पर तैयारी की गई होती तो बहुत सारे जीव बच जाते. पर क्या विपक्ष को इस बीमारी के बारे मे, वैक्सीन के बारे मे अफवाहे फैलाने के बजाय लोगों को सचेत नहीं करना चाहिए था? क्या अपने राजनीतिक स्वार्थ के ऊपर उठकर सरकार पर किसान आंदोलन, CAA विरोधी आंदोलन जैसा ही दबाव कोरोना से लड़ाई को लेकर नहीं बनाना चाहिए था? याद रहें की इस देश की जनता ये सवाल आप से भी जरूर पूछेगी. लोगों की हताशा और प्रतिदिन जलनेवाली चिताओं पर अपनी राजनीतिक रोटी आप नहीं सेंक सकते.

3 comments:

  1. भावपूर्ण श्रद्धांजली!

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  2. Bhavpurna Shrandhanjali

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  3. इस आलेख को पढ़ने से ऐसा लगता है कि घनश्याम सर बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति थें। उनका इस संदेहास्पद तरीके से चले जाना, बहुत ही सवाल खड़े करता है।
    भगवान इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे - सूचित प्रजापति 🙏🙏🙏🙏

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