ऐसे जीवन भी हैं जो जिये ही नहीं
जिनकों जीने के पहले ही मौत आ गई!
फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं
जिनको खिलने के पहले फिज़ा खा गई!
मेरा मित्र जनमेजय भी जिया ही नहीं. उसके जीने के पहले ही इस भयावह महामारी ने उसे उसकी पत्नी से,परिवार से,दोस्तों से, समाज से छीन लिया.
जनमेजय से मेरा परिचय ज्यादा पुराना नहीं, तीन साढ़े तीन साल ही हमको मिलें हुए. पर समय कितना भी कम क्यों ना हो, उसके प्रती स्नेह दृढ़ हुआ था. उससे जब भी बात हुई लगा की मुझे और ज्यादा पढ़ने की आवश्यकता हैं. हमेशा ही लगा, एक तो मैं उससे उम्र से बड़ा हु, मेरे पास उससे भी बड़ी डिग्री हैं, और तो और मैं प्राध्यापक हु किन्तु चीजों कों उससे बहुत कम जानता हु. विशेषतः भारतीय दर्शन पर उसकी समझ से मैं ज्यादा ही प्रभावित था. उसी के कारण वैदिक कालीन राजा जनमेजय के बारे मे पढ़ना हुआ.
संघ कार्यकर्त्ता के नाते हमारा परिचय हुआ. जनमेजय मेरे गृह जिले गडचिरोली के अहेरी ब्लॉक मे विस्तारक रहा था. मेरे साथ प्रायः मराठी मे ही बात करता था. लगभग 30-31 वर्ष का जनमेजय मूलतः हजारीबाग, झारखण्ड, गणित एवं भौतिक शस्त्र मे स्नातक, टाटा समाज विज्ञान संस्थान से स्नातकोत्तर की पढ़ाई, विदर्भ के यवतमाळ जिले मे भी संघ का दाइत्व. संघ से दाइत्व मुक्ति के बाद यूनिसेफ़, UNDP आदि सयुंक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियों के साथ काम. इतनी अल्पायु मे जनमेजय के अनुभवों की विविधता के कारण उसका व्यक्तिव परिपक्व था.
आज दिन भर कुछ लिखकर चाय बनाने के लिए श्याम कों उठा ही था, हम दोनो के एक दोस्त का फ़ोन आया. प्रायः हम रात कों ही बात करते हैं. इस समय उसके फ़ोन कों देखकर कुछ अनहोनी की आशंका मन मे बनी. ना चाहते हुए भी यह भयानक आशंका सच निकली. जनमेजय हम सबको छोड़कर अनंत मे विलीन हो गया.
पूर्णतः विचलित, अनिश्चितता की गर्त मे मैं, उसकी पत्नी कों फ़ोन कैसे करू, कैसे सांत्वना दू! मेरे बहन जैसी शिवानी भाभी! जनमेजय और शिवानी भाभी के विवाह के पूर्व ही हमारा परिचय जनमेजय ने ही करवाया था. उनका भोला सा चेहरा कितना दुःखी होगा! कुछ ही महीनों पूर्व उनके पिताजी का भी स्वर्गवास करोना की वजह से ही हुआ था. कितना बड़ा दुःख का पहाड़ उनपर गिर पड़ा हैं यह सोचकर और अधिक विचलित हो जाता हु!
एक वर्ष पूर्व ही तो उनकी शादी हुई थी. जनमेजय मुझसे कहता रहा, भाऊ काशी आ जाओ. भोलेनाथ के दर्शन करते हैं. मैं जा नहीं सका, कोरोना के कारण वे दोनो भी दिल्ली नहीं आ सके. मैं अकेला, निशाचर रात कों याद आये तब जनमेजय कों फ़ोन करता रहा, वह भी बिना तक्रार देर रात तक मुझसे बात करता रहा, मिनटों नहीं घंटो तक! बहुतेरे विषयों पर सहमती, असहमत होने पर मैं जरा चिढ़ता. किंतु जनमेजय अपना शांत!
इतने मे थोड़ी व्यस्तता के कारण लम्बे समय से बात नहीं हुई थी. मेरे ब्रॉडकास्ट लिस्ट मे जनमेजय था. नियमितता से मेरी गतिविधियां, कभी कबार लिखें हुए ब्लॉग उसे व्हाट्सएप्प भेजता रहा. कुछ 10-12 दिन पूर्व उसका मैसेज आया, भाऊ मै बी. एच. यू. के ICU मे एडमिट हु. फ़ोन किया तो कहा की बात करने मे परेशानी होती हैं, व्हाट्सएप्प पर बात करते हैं. व्हाट्सएप्प पर कहने लगा की मै स्वयंसेवक हु, हमारा दिल बड़ा होता हैं, कुछ नहीं होगा, जल्द ही स्वस्थ होता हु, फिर फ़ोन पर बात करते हैं. दो तीन दिन बाद मैसेज पर और बात हुई. अभी वह bipap मशीन पर था. पर एकदम पॉजिटिव बातें...अभी स्टेबल हु...4-5 दिनों मे नार्मल ऑक्सीजन सपोर्ट पे आऊंगा... फिर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज... फिर घर पे रिकवर हो जाऊंगा. दो दिन पूर्व ही भाभी जी से बात हुई थी, जनमेजय स्टेबल हैं यह सुनकर बहुत अच्छा लगा था.
पर आज यह व्याकुल करने वली वार्ता! कुछ समय के लिए तो लगता की यह अफवाह हैं, जनमेजय ठीक ही होगा. परन्तु हमारे चाहने से थोड़े ही जनमेजय लौट आएगा!
हे ईश्वर इतना निष्ठुर तो मत बन. ऐसे फूल जो अभी तक ठीक से खिले ही नहीं, उन्हें ऐसे चुन चुनकर मत ले जा अपने पास.
उनकी बहुत ज्यादा आवश्यकता यहां पर हैं.
ॐ शांती!