आखिकार दुर्दांत गुंडा विकास दुबे मारा गया. कल जब उज्जैन के महाकाल मंदिर से उसे गिरफ्तार किया गया तो कुछ ने रुदन शुरू किया की उसे एनकाउंटर से बचाने के लिए गिरफ्तारी का ड्रामा रचा गया. कुछ ने तो कई नेताओं का नाम भी उछालना शुरू कर दिया. अब जब वह एनकाउंटर मे मारा गया तो इन रुदालियोने रुदन शुरू कर दिया की एक राजनीतिक पार्टी के नेताओं को बचाने के लिए उसका एनकाउंटर किया गया. कुछ न्यूज़ पोर्टल्स तो यह भी लिख गए की वह ब्राह्मण जाती का होने के कारण उसे कुछ भी नहीं होगा. उसको सरकारि संरक्षण मिलेगा और कुछ अपनी जाती का अभिमान जताते हुए उसके एनकाउंटर को नाजायज बताने लगे. यह सब के सब ढोंगी है और घृणास्पद है.
मेरे पार्लियामेंट मे सांसद के स्वीय सचिव के तौर पर काम के दौरान बहोत सारे लोग टिकट लेने जैसे कामों के सिलसिले मे मिलते थे. ऐसे ही एक व्यक्ति के साथ वार्तालाप के दौरान वह कहने लगे की इलेक्शन मे खडे होने से पहले अपने इच्छित चुनावी क्षेत्र मे कम कम से चार गनर्स लेकर कुछ दिन घूमना पड़ता है. महाराष्ट्र मे मैंने ऐसी प्रथा नहीं देखी थी. मैंने उनसे पूछा गनर्स की क्या आवश्यकता पडती है. उसपर उस व्यक्ति ने कहा की ऐसा नहीं करोगे तो लोग आप को चुनावी उम्मीदवार के तौर पर गंभीरता से कभी नहीं लेंगे. मेरी क्षमता बिलकुल नहीं थी की मैं किसी को चुनावी टिकिट मिलवाने मे मदत करू, नहीं ऐसी क्षमता बनाने मे मुझे कोई रुची थी. जल्द ही मैंने उस काम को बाय बाय भी कर दिया.
इस उदाहरण से मेरा तात्पर्य यह है की विकास दुबे जैसे गुंडों के पनपने मे हमारा समाज भी जिम्मेदार है. लोकतान्त्रिक व्यवस्था मे गुप्त वयस्क मताधिकार के जरिए लोग किसी को कानोकान खबर हुए बिना अपना प्रतिनिधी चुन सकते है. फिर चुनावी उम्मीदवारों को गनर्स लेकर घूमने की आवश्यकता क्यों पडती है? जात-बिरादरी, क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों पर हम वोट देते रहें तो विकास दुबे पैदा होते रहेंगे.
याद रहें की 2001 मे विकास दुबे ने भा. ज. पा. सरकार के मंत्री संतोष शुक्ला को दिन दहाड़े पुलिस चौकी के परिसर मे मार डाला था. और बिना गवाहों के छूट भी गया था. ब.स.पा, समाजवादी से लेकर सभी पूर्वाश्रमी के उत्तर प्रदेश के सरकारों मे विकास दुबे ने अपनी पैट बना ली थी. योगी सरकार के सफाई अभियान के तले जब उसको अपना अंत करीब आता दिखाई दिया तो 3जुलाई को उसे दबिश देने गई पुलिस टीम के 8 कर्मियों को उसने मौत के घाट उतार दिया. एक छोटा गल्ली का गुंडा इतना दुर्दांत और खूंखार अपराधी बनने तक का सफर तय करता है. ऐसे कितने ही विकास दुबे अभी भी बिना ख़ौफ़ आतंक फैला रहें होंगे.
मुंबई मे एक समय अंडरवर्ल्ड इतना हावी था की उन माफियाओ के मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था. ए. टी. एस. के निर्माण के बाद दया नायक, प्रदीप शर्मा और अन्य एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ने उनका खात्मा नहीं किया होता तो शायद आज भी परिस्थिति गंभीर होती. यू. पी., बिहार में भी चाहिए की विकास दुबे जैसे गुंडों का वैसा ही हाल किया जाए. "सद रक्षणाय, खल निग्रहणाय" यही धेय्य वाक्य कमसे कम इन तत्वों का खात्मा होने तक पुलिस को अपनाना होगा.
आठ पुलिस कर्मियों को मारने के बाद भी क्या विकास दुबे बच सकता? किसी भी सूरत में उसे जिन्दा नहीं छोड़ा जा सकता था. वो चाहे ब्राह्मण हो, ओबीसी हो या दलीत हो, गुंडा सिर्फ गुंडा होता है. उसके प्रती सहानुभूति बरतने वाले भी गुंडा प्रवृति के ही होते है. उनका धिक्कार हम सब का आवश्यक कर्तव्य बनता है. विकास दुबे की माता सरला दुबे जी पर हमें गर्व होना चाहिए की वह वृद्धा कहती है मुझे उसका मुख नहीं देखना. उन्होंने विकास दुबे को डिसओन किया.

बहुत अच्छा लेख है, विकाश दुबे जैसे अभी देश में बहुत है, जिन्हें राजनैतिक दलों द्वारा सपोर्ट मिलता है।
ReplyDeleteपढ़कर कमैंट्स के लिए धन्यवाद सर 🙏🙂
Deleteऐसी लेख से,up के बहार रहनेवाले लोग जान पायेंगे समझ पायेंगे की बहुत दिनो से पोलिटिकल संरक्षण मे चली आ रही गुंडाराज क्या है और इनकी सजा क्या होना चाहिये।
ReplyDeleteऐसी लेख से,up के बहार रहनेवाले लोग जान पायेंगे समझ पायेंगे की बहुत दिनो से पोलिटिकल संरक्षण मे चली आ रही गुंडाराज क्या है और इनकी सजा क्या होना चाहिये।
ReplyDeleteसही कहा निर्मलेंदु जी. आप के कमैंट्स के लिए धन्यवाद
Deleteबहुत ही सोधपूर्ण लेख है आपका आपने सबकी बोलती बन्द कर दिया अपने इस स्टीक लेख से
ReplyDeleteबहुत ही सोधपूर्ण लेख है आपका आपने सबकी बोलती बन्द कर दिया अपने इस स्टीक लेख से
ReplyDeleteThank you Sir🙏💐
DeleteNice analysis.
ReplyDeleteThank you ji🙏💐
Deleteसही बात है सर....गुंडा आखीर गुंडाही होता है..
ReplyDeleteबहोतही सुंदर एवं वास्तविकता दर्शनेवाला लेख आपने लिखा है ..ऐसे गुंडो के खिलाप समाज मन तयार होनेके ऐसे लेख समाजमे पहोचाना अत्यावशक है !!
Deleteबहोतही सुंदर एवं वास्तविकता दर्शनेवाला लेख आपने लिखा है ..ऐसे गुंडो के खिलाप समाज मन तयार होनेके ऐसे लेख समाजमे पहोचाना अत्यावशक है !!
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