श्रद्धेय स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के जन्म शताब्दी समारोह का शुभारंभ भारत के उपराष्ट्रपती श्री वैंकेया नायडू जी द्वारा रफी मार्ग पर स्थित मावळंकर हॉल मे हुआ. कार्यक्रम मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह माननीय श्री दत्तात्रय होसबले जी, माननीय सजी नारायण जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय मजदूर संघ, माननीय श्री ओ. पी. कोहली जी, पूर्व राजयपाल, गुजरात एवं अध्यक्ष, जन्म शताब्दी समारोह समिती, दिल्ली प्रदेश और अन्य मान्यवरों ने उपस्थित जनसमुदाय का मार्गदर्शन किया.
श्रद्धेय स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे मनीषी, साधुचरित पुरुषोत्तम राष्ट्र जीवन मे विरले ही होते है. मैं 2001मे ग्यारहवीं कक्षा की पढ़ाई करते समय गडचिरोली के संघ कार्यालय मे रहता था. मराठी मे प्रकाशित होनेवाली विवेक मासिक मैं नियमितता से पढता था. उसमे और अन्य पत्रिकाओं मे दत्तोपंत जी के लेख और भाषण मैं पढ़ने की कोशिश करता था. उन दिनों स्वदेशी जागरण मंच का काम महारष्ट्र मे अच्छी गती पकड़ राहा था. दो तीन साल पहले ही हमने खुली अर्थ व्यवस्था(भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण) का स्वीकार किया था. देश के सामने डंकेल प्रस्ताव, वैश्विक व्यापार सगठन की शर्ते ऐसे कई आवाहन खड़े थे. इन विषयों पर उनके लेख, भाषण, शोधपत्र नियमित प्रकाशीत होते थे. उस आयु मे बहोत तो ज्यादा कुछ समझ नहीं पाता था. आगे चलकर मैंने एम. ए. आंतरराष्ट्रीय सम्बन्धो मे एवं एम. फील. आंतरराष्ट्रीय संगठन मे किया. इस तरह से उनके बौद्धिक कार्य का मै मेरे निजी जीवन मे लाभार्थी हू.
सैद्धांतिक बौद्धिकता एवं वास्तविक कामों मे सक्रियता इन क्वचित पाए जाने वाले गुणों का मूर्तरूप श्रद्धेय ठेंगड़ीजी थे. उन्होंने अपने जीवन काल मे भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, सर्व पंथ समादर मंच, पर्यावरण मंच की केवल स्थापना ही नहीं अपितू उनको भारत वर्ष के हर कोने तक पहुँचाने का कार्य किया. उन्ही के कार्य एवं प्रेरणा के कारण यह संगठन न केवल राष्ट्र प्रवर्तन के वाहक बने, राष्ट्र के समर्थ प्रहरी भी बने. इसीके साथ वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय अधिवक्ता परिषद, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत एवं भारतीय विचार केंद्र इन सगठनों के संस्थापक सदस्य भी रह चुके है. ये हुई उनके धरातल पर काम करने की बात पर उनका व्यक्तित्व इतने तक ही समिति नहीं रहा. वास्तव मे स्वामी विवेकानंद, श्री गुरूजी एवं दिन दयाल उपाध्याय जी जैसे राष्ट्र ऋषियों की चिंतन की श्रृंखला मे बसने वाले वे महान चिंतक भी थे. उन्होंने लगभग 200 से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तके लिखी, सैकड़ो प्रतिवेदन प्रकाशित किये तथा उनके हजारों की संख्या में आलेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं.
संघ के प्रचारक होने के नाते कुशल संगठक होना उनके स्वाभाव की विशेषता रही. उनके जीवन का लम्बा समय केरल और पश्चिम बंगाल मे काम करने मे भी बिता. अतः वे जहा भी गए वहा के कार्यकर्ताओं एवं नागरिकों को अपने ही मे से एक प्रतीत हुए. मराठी, हिंदी, अंग्रेजी के साथ साथ मल्यालम एवं बंगाली भाषा पर भी उनका प्रभुत्व था. उनपर लिखें हुए संस्मरण पढ़ने पर पता चलता हैं की वे अजात शत्रु थे.उन्होंने अपने भावविश्व का परिघ केवल अपने ही कार्यकर्ताओं तक सिमित नहीं रखा अपितू वे विपरीत विचारों के कार्यकर्त्ता एवं लोगों के साथ भी उतनेही सहजता के साथ संवाद करते थे. भारत की सनातन विचार परंपरा के साथ अन्य ज्ञान परम्पराओं के गहन अद्धेता एवं चिंतक तो वे थे ही पर कार्ल मार्क्स से लेकर उमर ख़य्याम की रुबाइयों तक पुराने एवं अद्ययावत साहित्य का अध्ययन भी उन्होंने किया था. राज्यसभा मे सांसद के नाते भी उन्होंने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य मे सकारत्मक राजनीती की अमीट छाप छोड़ी.
मैंने हाल ही मे उनके समय समय पर लिखें हुए लेख और भाषणों को संकलित कर प्रकाशित "तीसरा विकल्प" यह पुस्तक पढ़ी. उसमे न्यायवावस्था, संविधान, स्वदेशी के विविध आयाम, अर्थशास्त्र की हिन्दू संकल्पना, औद्योगिक नीतियाँ, आधुनिकीकरण और उसमे डूबते-उतरते अर्थसंकल्प, पर्यावरण, तकनिकी परिवर्तन के साथ स्वयंरोजगार की कल्पना इन विषयों का गहन चिंतन हैं. श्रद्धेय दत्तोपंतजी केवल समस्याओं को उजागर कर ठिठकते नहीं बल्कि उन समस्याओं का समाधान और उस दिशा मे संभानाओं पर भी अधिकरवानी से विषय विवेचन करते हैं. एक तवचिंतक, सक्षम नेता, उत्कृष्ठ संगठक इन दुर्लभ विषेशताओं से सम्पन्न राष्ट्रऋषि के जन्म के सौ साल 10 नवंबर 2019 को पुरे हुए. उस उपलक्ष मे हम भारत भर उनका जन्मशताब्दी उत्सव मना रहे हैं. उनके विचार एवं कार्य से प्रेरणा लेकर उनके दिखाए पथ पर मार्गक्रमण करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजली होंगी.
श्रद्धेय स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे मनीषी, साधुचरित पुरुषोत्तम राष्ट्र जीवन मे विरले ही होते है. मैं 2001मे ग्यारहवीं कक्षा की पढ़ाई करते समय गडचिरोली के संघ कार्यालय मे रहता था. मराठी मे प्रकाशित होनेवाली विवेक मासिक मैं नियमितता से पढता था. उसमे और अन्य पत्रिकाओं मे दत्तोपंत जी के लेख और भाषण मैं पढ़ने की कोशिश करता था. उन दिनों स्वदेशी जागरण मंच का काम महारष्ट्र मे अच्छी गती पकड़ राहा था. दो तीन साल पहले ही हमने खुली अर्थ व्यवस्था(भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण) का स्वीकार किया था. देश के सामने डंकेल प्रस्ताव, वैश्विक व्यापार सगठन की शर्ते ऐसे कई आवाहन खड़े थे. इन विषयों पर उनके लेख, भाषण, शोधपत्र नियमित प्रकाशीत होते थे. उस आयु मे बहोत तो ज्यादा कुछ समझ नहीं पाता था. आगे चलकर मैंने एम. ए. आंतरराष्ट्रीय सम्बन्धो मे एवं एम. फील. आंतरराष्ट्रीय संगठन मे किया. इस तरह से उनके बौद्धिक कार्य का मै मेरे निजी जीवन मे लाभार्थी हू.
सैद्धांतिक बौद्धिकता एवं वास्तविक कामों मे सक्रियता इन क्वचित पाए जाने वाले गुणों का मूर्तरूप श्रद्धेय ठेंगड़ीजी थे. उन्होंने अपने जीवन काल मे भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, सर्व पंथ समादर मंच, पर्यावरण मंच की केवल स्थापना ही नहीं अपितू उनको भारत वर्ष के हर कोने तक पहुँचाने का कार्य किया. उन्ही के कार्य एवं प्रेरणा के कारण यह संगठन न केवल राष्ट्र प्रवर्तन के वाहक बने, राष्ट्र के समर्थ प्रहरी भी बने. इसीके साथ वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय अधिवक्ता परिषद, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत एवं भारतीय विचार केंद्र इन सगठनों के संस्थापक सदस्य भी रह चुके है. ये हुई उनके धरातल पर काम करने की बात पर उनका व्यक्तित्व इतने तक ही समिति नहीं रहा. वास्तव मे स्वामी विवेकानंद, श्री गुरूजी एवं दिन दयाल उपाध्याय जी जैसे राष्ट्र ऋषियों की चिंतन की श्रृंखला मे बसने वाले वे महान चिंतक भी थे. उन्होंने लगभग 200 से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तके लिखी, सैकड़ो प्रतिवेदन प्रकाशित किये तथा उनके हजारों की संख्या में आलेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं.
संघ के प्रचारक होने के नाते कुशल संगठक होना उनके स्वाभाव की विशेषता रही. उनके जीवन का लम्बा समय केरल और पश्चिम बंगाल मे काम करने मे भी बिता. अतः वे जहा भी गए वहा के कार्यकर्ताओं एवं नागरिकों को अपने ही मे से एक प्रतीत हुए. मराठी, हिंदी, अंग्रेजी के साथ साथ मल्यालम एवं बंगाली भाषा पर भी उनका प्रभुत्व था. उनपर लिखें हुए संस्मरण पढ़ने पर पता चलता हैं की वे अजात शत्रु थे.उन्होंने अपने भावविश्व का परिघ केवल अपने ही कार्यकर्ताओं तक सिमित नहीं रखा अपितू वे विपरीत विचारों के कार्यकर्त्ता एवं लोगों के साथ भी उतनेही सहजता के साथ संवाद करते थे. भारत की सनातन विचार परंपरा के साथ अन्य ज्ञान परम्पराओं के गहन अद्धेता एवं चिंतक तो वे थे ही पर कार्ल मार्क्स से लेकर उमर ख़य्याम की रुबाइयों तक पुराने एवं अद्ययावत साहित्य का अध्ययन भी उन्होंने किया था. राज्यसभा मे सांसद के नाते भी उन्होंने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य मे सकारत्मक राजनीती की अमीट छाप छोड़ी.
मैंने हाल ही मे उनके समय समय पर लिखें हुए लेख और भाषणों को संकलित कर प्रकाशित "तीसरा विकल्प" यह पुस्तक पढ़ी. उसमे न्यायवावस्था, संविधान, स्वदेशी के विविध आयाम, अर्थशास्त्र की हिन्दू संकल्पना, औद्योगिक नीतियाँ, आधुनिकीकरण और उसमे डूबते-उतरते अर्थसंकल्प, पर्यावरण, तकनिकी परिवर्तन के साथ स्वयंरोजगार की कल्पना इन विषयों का गहन चिंतन हैं. श्रद्धेय दत्तोपंतजी केवल समस्याओं को उजागर कर ठिठकते नहीं बल्कि उन समस्याओं का समाधान और उस दिशा मे संभानाओं पर भी अधिकरवानी से विषय विवेचन करते हैं. एक तवचिंतक, सक्षम नेता, उत्कृष्ठ संगठक इन दुर्लभ विषेशताओं से सम्पन्न राष्ट्रऋषि के जन्म के सौ साल 10 नवंबर 2019 को पुरे हुए. उस उपलक्ष मे हम भारत भर उनका जन्मशताब्दी उत्सव मना रहे हैं. उनके विचार एवं कार्य से प्रेरणा लेकर उनके दिखाए पथ पर मार्गक्रमण करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजली होंगी.
उत्तम विचारोत्तेजक लेख, अभिनंदन
ReplyDeleteMan. Thengdi Ji was a scholar with immense organising skills. His another book, Karyakarta, must be ready by all those willing to work in social field. Regards
Deleteधन्यवाद जी 🙏
Deleteधन्यवाद जी 🙏💐
Deleteदत्तोपंतजी के विचार आज भी ईतने प्रासंगिक है, ये जानकर आनंद हुआ! खास कर हिंदु अर्थशास्त्र की संकल्पना विपुलतापर आधारीत कैसी है अच्छी तरहसे समझायी है!
ReplyDeleteधन्यवाद जी 🙏💐
Deleteअति उत्तम
ReplyDeleteधन्यवाद जी 🙏💐
Deleteपहले मैं इनको नहीं जानता था, लेकिन अब जान गया हूं। बहुत अच्छा लेख है।
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