Wednesday, 28 May 2025

अशांत पडोसी राष्ट्र और भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताएं

 

 


 

भारत का भू-राजनीतिक परिदृश्य उसके समीपवर्ती पड़ोस में जारी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से गहराई से प्रभावित होता है। भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा केवल सैन्य या सामरिक मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि आतंकवाद, सीमा विवाद, शासन संकट, और आर्थिक अव्यवस्था जैसे विविध कारकों से भी प्रभावित होती है। इस ब्लॉग के माध्यम से मैं पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, और श्रीलंका में व्याप्त उथल-पुथल का विश्लेषण करने के साथ, भारत की सुरक्षा चिंताओं को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करूँगा।

दक्षिण एशिया विश्व के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक है। यहां जातीय संघर्ष, धार्मिक उग्रवाद, सीमा विवाद और राजनीतिक अस्थिरता आम हैं। क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत को अपने पड़ोस में मौजूद इन संकटों से बहुस्तरीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत ने कूटनीति, सैन्य तैयारियों और क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से इन खतरों का मुकाबला करने का प्रयास किया है, फिर भी पड़ोसी देशों की आंतरिक अस्थिरता भारत के लिए निरंतर चिंता का विषय बनी हुई है।

 

पाकिस्तान: सीमा पार आतंकवाद और राजनीतिक अस्थिरता

आतंकवाद: पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों जैसे जैश--मोहम्मद और लश्कर--तैयबा द्वारा बार-बार भारत को निशाना बनाया जाता है। हाल ही में 2025 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा किया गया ऑपरेशन सिंदूर इस खतरे का जीवंत उदाहरण है।

राजनीतिक संकट: पाकिस्तान में सेना और नागरिक सरकार के बीच तनाव, तख्तापलट की आशंका और नेतृत्व परिवर्तन से देश की नीति निर्माण प्रक्रिया कमजोर हो गई है।

आर्थिक पतन: अत्यधिक महंगाई, बार-बार IMF से बेलआउट और जन आक्रोश ने पाकिस्तान को एक असफल राज्य बनने की दिशा में धकेल दिया है।

 

अफगानिस्तान: तालिबानी शासन और कट्टरपंथी खतरा

आतंकी पनाहगाह: तालिबान और हक्कानी नेटवर्क, अल-कायदा जैसे संगठनों के साथ संबंध बनाए हुए हैं, जिससे कश्मीर समेत पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैलने की आशंका है। मानवीय संकट: खाद्य, शिक्षा, और स्वास्थ्य संकट ने अफगानिस्तान को एक असफल राज्य बना दिया है। भारत ने काबुल से औपचारिक संबंध भले कम रखे हों, पर सहायता और क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से प्रभाव बनाए रखा है।

 

चीन: सीमा विवाद और रणनीतिक घेराबंदी

LAC तनाव: 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से सीमा पर गतिरोध बना हुआ है और कई दौर की सैन्य वार्ताएं विफल रही हैं। रणनीतिक घेराबंदी: चीन का BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव), ग्वादर और हंबनटोटा जैसे बंदरगाह भारत को चारों ओर से घेरने की रणनीति का हिस्सा हैं। आर्थिक और साइबर खतरे: चीनी साइबर जासूसी और आपूर्ति श्रृंखला में निर्भरता भी भारत के लिए एक चुनौती है।

 

म्यांमार: जातीय संघर्ष और शरणार्थी संकट

सैन्य तख्तापलट और नागरिक संघर्ष ने भारत की पूर्वोत्तर सीमा को अस्थिर कर दिया है। शरणार्थियों का आगमन: हजारों लोग मिज़ोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में प्रवेश कर चुके हैं, जिससे सामाजिक तनाव उत्पन्न हुआ है। मणिपुर की घटनाएं भारत की राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए अत्यंत चिंता का विषय बनी हुई है।  सशस्त्र समूहों की सक्रियता: म्यांमार की अराजकता का लाभ उठाकर भारतीय विद्रोही संगठनों ने फिर से शरण ली है।

 

नेपाल: राजनीतिक अस्थिरता और चीन का प्रभाव

सरकारों का बार-बार पतन और गठबंधन की राजनीति ने नीति में निरंतरता को बाधित किया है। चीन की घुसपैठ: चीन ने पिछले कुछ वर्षों में नेपाल में आधार मजबूत किया है, जिससे भारत-नेपाल संबंधों में तनाव आया है। सीमा विवाद: कालापानी, लिपुलेख, लिम्पियाधुरा जैसे क्षेत्रों को लेकर विवाद जारी है।

 

बांग्लादेश: उभरता कट्टरपंथ और आर्थिक संकट

इस्लामी कट्टरवाद: बांग्लादेश में जमात--इस्लामी और अन्य संगठनों की सक्रियता चिंता का विषय है। रोहिंग्या संकट: कॉक्स बाजार में 10 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों की मौजूदगी सामाजिक आर्थिक संकट पैदा कर रही है। आर्थिक अस्थिरता: युवाओं में बेरोजगारी और मुद्रा संकट से असंतोष बढ़ रहा है।

 

श्रीलंका: संकट से उबरने की चुनौती और विदेशी प्रभाव

ऋण संकट के कारण देश दिवालिया हुआ, हालांकि भारत की $4 अरब सहायता ने अस्थायी राहत दी। चीन का प्रभाव: चीनी कर्ज और बुनियादी ढांचे में निवेश से श्रीलंका की रणनीतिक स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है। तमिल मुद्दा: तमिल अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को लेकर भारत और श्रीलंका के संबंधों में संवेदनशीलता बनी हुई है।

 

भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया

. सैन्य तैयारी

सीमावर्ती बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण

खुफिया साझा करना और संयुक्त पेट्रोलिंग

 

. कूटनीतिक प्रयास

वैक्सीन और आपदा सहयोग के माध्यम से सॉफ्ट पावर का विस्तार

QUAD, BIMSTEC, SCO जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी

 

. विकास सहयोग

पड़ोसी देशों को आर्थिक सहायता (जैसे श्रीलंका, अफगानिस्तान, नेपाल)

क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं में निवेश (भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश)

 

निष्कर्ष

भारत के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा का अर्थ केवल सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि एक अस्थिर पड़ोस को स्थायित्व और विकास के पथ पर लाना भी है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संकटों से घिरे भारत के पड़ोसी केवल आतंकवाद और घुसपैठ को बढ़ावा देते हैं, बल्कि क्षेत्रीय संतुलन को भी खतरे में डालते हैं। ऐसी स्थिति में भारत को कूटनीति, सैन्य शक्ति और आर्थिक सहयोग का संतुलित उपयोग कर अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखने और पड़ोस में स्थायित्व लाने का प्रयास करना चाहिए।