महान वैज्ञानिक डॉ. नम्बी नारायणन जी पर फ़िल्माया "राकेट्री: द नम्बी इफ़ेक्ट" फ़िल्म कल देखा| डॉ. नम्बी नारायणन के जीवन के प्रेरणादायक क्षण, भारत के स्पेस रिसर्च मे उनके योगदान, राष्ट्र के प्रती समर्पण भाव एवं त्याग यह देखकर छाती अभिमान से फूलती है| परंतु यह देखकर कि इतने महान एवं प्रतिभाषाली वैज्ञानिक के साथ कितना निम्न एवं क्षुद्र प्रकार का व्यवहार किया गया, छाती क्रोध से धधक उठती है| उद्विग्नता से हम यह खुद से पूछ बैठते है "हेची फळ का मम तपाला?" माने 'मेरे तप का क्या यही फल मुझे मिलना था?'
मदुराई में मैकेनिकल इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के बाद, नम्बि साहब ने 1966 में इसरो में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन पर एक तकनीकी सहायक के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने नासा फेलोशिप अर्जित की और 1969 में उन्होंने प्रिंसटन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया । उन्होंने प्रोफेसर लुइगी क्रोको के मार्गदर्शन में केमिकल राकेट प्रोपल्शन में अपना मास्टर का अध्ययन पूर्ण किया। उनकी लिक्विड प्रोपल्शन की एक्सपरटाइज भारत के लिए अत्यावश्यक रही क्योकि तब तक भारत की रॉकेट्री की तकनिकी केवल सॉलिड प्रोपलेंट्स पर ही निर्भर थी।
उनके अथक प्रयास, टैलेंट एवं व्यवस्थापन कौशल के ही कारण 'विकास राकेट इंजन' का निर्माण भारत में किया गया कि जिसके माध्यम से PSLV एवं GSLV रॉकेट्स का अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया जाता है। आज भी विकास इंजन की सटीकता बरक़रार है। उन्ही के नेतृत्व में क्रोयोजेनिक इंजन का विकास होना था। परन्तु उनपर यह तकनिकी पाकिस्तान को पैसे के लालच में बेचने की आरोप लगाए गए। उन्हें अरेस्ट किया गया और उनका पुलिस और IB के लोगो ने भयंकर टार्चर किया । यह निश्चित रूप से उनकी देशभक्ति, प्रतिभा और राष्ट्र के लिए बलिदान का भद्दा मजाक था।
यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें नासा में काम करने का बहुतही आकर्षक मौका मिला था। अगर वे इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में अध्ययन के बाद अमेरिका में ही रह जाते, वे खूब पैसा और शौहरत कमा लेते। परन्तु उन्होंने पैसो से ज्यादा अपने देश के हितों को अहमियत दी और NASA के प्रस्ताव को ठुकराते हुए ISRO के स्पेस रिसर्च कार्यक्रम से ही जुड़े रहे।
इन आरोपों के कारण उनका करियर और उनका कौटुम्बिक एवं सामाजिक जीवन एक प्रकार से ध्वस्त ही हुआ। इस मुद्दे से जुड़े दो पहलू हैं। पहला, केरल की क्षुद्र राजनीति और दूसरा, अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र। अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र तो समझा जा सकता है। बड़े राष्ट्र विशेषकर अमेरिका, उन दिनों में भारत को स्वयभू होने नहीं देना चाहते थे। भारत का ISRO के वैज्ञानिकों के कारण स्पेस रिसर्च में विक्सित होना और अन्य राष्ट्रों, अमेरिका आदि. पर हमारी निर्भरता समाप्त होना उनको मंजूर नहीं था। इसी के साथ, हम अन्य राष्ट्रों को बहुत ही किफायती दरों में उनके स्पेस स्याटेलाइट प्रक्षेपणों में सहायता कर सकते थे जिससे भारत का रुतबा अंतर्राष्ट्रीय पटल पर और ही उभर जाता।
परन्तु भारत में क्षुद्र राजनीती का क्या कहा जाए? अपने ही देश में वह कोनसी शक्तिया थी जो भारत को उभरते हुए नहीं देखना चाहती थी? आखिर वह कोनसे राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने अपने क्षुद्र राजनितिक हितों के चलते भारत के प्रगति में इतना बड़ा रोड़ा डाला? वह कोनसे अधिकारी थे जिन्होंने अपने आकाओं की गुलामी करतें इतने माहान और प्रतिभाशाली वैज्ञानिक को इस तरह प्रताड़ित किया?
डॉ नम्बि नारायणन साहब को भारत के उच्चतम न्यायालय ने बाइज्जत बरी किया यह ख़ुशी की बात है। परन्तु यदि वे दोषी नहीं तो वह कौन है जो इस षड्यंत्र में शामिल थे इसका पूरा पता लगाना अभी बाकि है। हमें एक राष्ट्र के रूप में यदि अंतररष्ट्रीय परिदृश्य में सीना तानकर और सर उठाकर कर चलना है तो ऐसी शक्तियों का इलाज समय पर होना अत्यावश्यक है।
इस फिल्म के लिए R Madhvan का ह्रदय से आभार। उनका अभिनय हृदयस्पर्शी है और अत्यंत उतकृष्ट फिल्म उन्होंने बनाई है। इसके लिए उन्होंने चार-साढे साल का खासा समय लगाया है। उनकी टीम को हार्दिक बधाई। सब को अवश्य देखने जैसी फिल्म है। अवश्य देखें।