पश्चिम एशिया दशकों से संघर्ष, अस्थिरता और भू-राजनीतिक तनावों का केंद्र रहा है। यहां के घटनाक्रम न केवल इस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं, बल्कि वैश्विक शक्तियों के समीकरणों पर भी असर डालते हैं। 13 जून 2025 में शुरू हुआ ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिवसीय युद्ध इस क्षेत्र की जटिलता और टकराव की तीव्रता को दर्शाता है। वर्षों से छाया युद्ध (proxy war) लड़ने वाले इन दो विरोधी राष्ट्रों का प्रत्यक्ष सैन्य टकराव, न केवल अभूतपूर्व था, बल्कि इसके निहितार्थ भी गहरे और दूरगामी हैं।
युद्ध की प्रकृति: प्रॉक्सी से प्रत्यक्ष युद्ध की ओर
ईरान और इज़राइल के बीच शत्रुता नई नहीं है। दशकों से यह टकराव अप्रत्यक्ष रूप में, लेबनान में हिज़्बुल्लाह, ग़ज़ा में हमास, इराक़ और सीरिया में शिया मिलिशिया के ज़रिये, ईरान के शह पर इजराइल के विरुद्ध चलता रहा है। लेकिन यह पहला अवसर था जब दोनों राष्ट्र प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने युद्ध के मैदान में उतरे। यह परिवर्तन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि अब संघर्ष केवल क्षेत्रीय प्रभाव तक सीमित नहीं, बल्कि रणनीतिक और अस्तित्वगत आयाम ले चुका है।
युद्ध की पृष्ठभूमि और प्रारंभिक घटनाक्रम
मई 2025 के अंत में, ईरान के नतांज़ और फोर्दो में स्थित परमाणु प्रतिष्ठानों के आसपास असामान्य गतिविधियों के बाद अचानक मिसाइल और ड्रोन हमले शुरू हुए। इज़राइल ने इन प्रतिष्ठानों पर गहरे भू-गर्भीय बमों से हमला किया, जिससे कई प्रमुख सेंट्रीफ्यूज, प्रयोगशालाएं और विद्युत संयंत्र तबाह हो गए। इसके जवाब में ईरान ने तेहरान, इस्फ़हान और फोर्दो से मिसाइलें दागीं, जो इज़राइल के विभिन्न शहरों और सैन्य ठिकानों को निशाना बना रही थीं।
हालांकि, इज़राइल की वायु सुरक्षा प्रणाली—‘आयरन डोम’, ‘डेविड स्लिंग’ और ‘ऐरो-3’—ने 90 प्रतिशत से अधिक मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया। इसके विपरीत, ईरान की वायु रक्षा प्रणाली, विशेष रूप से S-300 और घरेलू रूप से विकसित रक्षा प्रणाली, इज़राइल के हमलों को रोकने में नाकाम रही।
दोनों देशों के रणनीतिक लक्ष्य और उनके निष्कर्ष
ईरान के रणनीतिक उद्देश्य:
अपने परमाणु कार्यक्रम की रक्षा
सैन्य प्रतिरोधक छवि को बनाए रखना
प्रॉक्सी नेटवर्क और क्षेत्रीय प्रभाव को मजबूत रखना
घरेलू असंतोष और आर्थिक संकट से ध्यान हटाना
इज़राइल के रणनीतिक उद्देश्य:
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाना
क्षेत्रीय सैन्य और तकनीकी श्रेष्ठता को स्थापित करना
ईरानी प्रॉक्सी नेटवर्क को कमजोर करना
पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में झुकाना
अब इन लक्ष्यों की पूर्ति की समीक्षा करते हैं।
ईरानी परमाणु कार्यक्रम: कितनी क्षति हुई?
ईरान लगातार यह दावा करता रहा है कि उसके परमाणु कार्यक्रम को कोई खास क्षति नहीं हुई। लेकिन स्वतंत्र विश्लेषकों, सैटेलाइट चित्रों और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की रिपोर्ट्स इससे उलट कहती हैं।
नतांज़ और फोर्दो में प्रमुख गहराई वाले बंकर नष्ट हुए। अत्यधिक संवेदनशील सेंट्रीफ्यूज प्रणाली तबाह हुई। कम-समृद्ध यूरेनियम की भंडारण इकाइयों में आग लगी। तीन शीर्ष वैज्ञानिकों की हत्या, जिनमें प्रमुख भौतिकविद डॉ. मेहरदाद फरोखी भी शामिल थे।
निष्कर्ष: ईरान का बुनियादी ढांचा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसे फिर से खड़ा करना समय और संसाधन दोनों की मांग करेगा। इज़राइल ने अपने इस प्रमुख लक्ष्य को प्रभावी रूप से हासिल किया है।
सैन्य श्रेष्ठता और वायु नियंत्रण
इज़राइल की सैन्य कार्रवाई न केवल योजनाबद्ध थी, बल्कि तकनीकी रूप से भी अत्याधुनिक थी। उसने स्टील्थ विमानों, साइबर युद्ध, सैटेलाइट-निर्देशित मिसाइलों और मानव रहित ड्रोन का प्रभावी उपयोग किया। ईरान की S-300 वायु रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कर दिया गया। वायुसेना ठिकानों पर हमले से रडार और हवाई पट्टियां नष्ट हो गई। साइबर हमलों से कई मिसाइल नियंत्रण केंद्र अक्षम हो गए ।
निष्कर्ष: इज़राइल ने संपूर्ण युद्धकाल में वायु क्षेत्र पर प्रभुत्व बनाए रखा और ईरान के भीतर तक अपने विमानों को घुसपैठ करने दिया। यह एक निर्णायक बढ़त थी।
प्रॉक्सी नेटवर्क और क्षेत्रीय प्रभाव
ईरान का प्रभाव पश्चिम एशिया में उसकी प्रॉक्सी सेनाओं पर निर्भर करता है। हिज़्बुल्लाह, हमास, शिया मिलिशिया जैसे संगठन उसके रणनीतिक हाथ हैं। इस युद्ध में इज़राइल ने इनमें से कई पर निशाना साधा: लेबनान और सीरिया में हिज़्बुल्लाह के ठिकाने तबाह कर दिए। हमास के सैन्य कमांडरों की हत्या की। इराक़ में शिया मिलिशिया के गोदामों को नष्ट किया ।
ईरान की प्रतिक्रिया धीमी और असंगठित थी। इससे साफ हुआ कि उसके प्रॉक्सी नेटवर्क में संप्रेषण और रणनीति की कमी है।
निष्कर्ष: इज़राइल ने ईरान के क्षेत्रीय नेटवर्क को कमजोर कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और अमेरिका की भूमिका
हालांकि अमेरिका ने औपचारिक रूप से इस युद्ध में भाग नहीं लिया, लेकिन कई रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि उसने इज़राइल को खुफिया सहायता, तकनीकी डेटा और हथियार प्रणाली में सहयोग प्रदान किया।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान, जिसमें उन्होंने इस युद्ध को “12 दिवसीय युद्ध” कहा और दोनों देशों को बधाई दी, भले ही विवादास्पद था, लेकिन इस बात को उजागर करता है कि अमेरिका ने परोक्ष रूप से इज़राइल की सैन्य सफलता में भूमिका निभाई।
आगे की राह: शांति के लिए आवश्यक कदम
पश्चिम एशिया विश्व राजनीति के लिए न केवल अपनी भू-राजनीति के कारण महत्वपूर्ण है, बल्कि भू-आर्थिक दृष्टि से भी यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसलिए, इस प्रदेश में शांति की बहाली न केवल इस क्षेत्र की प्रगति के लिए बल्कि समग्र विश्व की प्रगति के लिए भी एक महत्वपूर्ण प्रेरक शक्ति है। उसके लिए यहाँ पर उचित कूटनीतिक प्रयास अपनाए जाने की आवश्यकता है। यहाँ पर शांति वार्ताओं को आगे बढ़ने के लिए खाड़ी देशों जैसे, तुर्की, मिस्र और जॉर्डन आदि क्षेत्रीय शक्तियों को शांति वार्ता की प्रक्रिया में शामिल किये जाने की आवश्यकता है। इसमें IAEA
(इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस क्षेत्र में, विशेषकर, ईरान द्वारा चलाये जा रहे परमाणु कार्यक्रमों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए IAEA द्वारा निरीक्षण फिर से सक्रिय किये जाने की आवश्यकता है। किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से ईरान-इजराइल के
मध्य में वार्ता की संभावना को टटोला जाने की भी आवश्यकता है। इसके लिए अमरीका द्वारा पश्चिम एशिया के अन्य देशों को साथ में लेते हुए की गई पहल कारगर साबित हो सकती है। इसके साथ में, ग़ाज़ा और वेस्ट बैंक में स्थिरता प्रदान करने की भी पहल महत्वपूर्ण है। उसके बिना इस क्षेत्र में व्यापक शांति की संभावनाएं धुंदली से दिखाई पड़ती है।